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मे प्रकारान्तरसे नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, कॉल और भव, ऐसे १ "उच्चारिऊण णाम, अरुहाईण विमुद्धटेमम्मि । पुफ्फाईणि खिवि जति विण्णेया णामपजा सा ॥"
--वमुनन्दिश्रा। अर्थात्-अर्हतादिकका नाम उच्चारण करके किसा शुद्ध स्थानमे जो पुष्पा दिकक्षेपण किये जाते है, उसको नामपूजन कहते है ।
२ तदाकार वा अतदाकार वस्तुम जिनेन्द्रादिक गुणोका आरोपण और सकल्प करके जो पूजन किया जाता है, उसको स्थापनापूजन कहते है। स्थापनाके दो भेद है-१ सद्भावस्थापना और २ असद्भावस्थापना। अरहतोकी प्रतिष्ठाविधिको सद्भावस्थापना कहते है । ( स्थापनापूजनका विशेष वणन जानने के लिये देखो वमुनन्दिश्रावकाचार आदि ग्रय ।)। ३ “दव्वेण य दवस्स य, जा जा जाण दव्वपूजा सा ।
दव्वेग गधसलिलाइपुवणिरण कायव्वा ॥ तिविहा दव्व पूजा मचिनाचित्तामेम्सभएण । पञ्चक्वजिणाईण सचित्तपूजा जहाजोग्ग । तेसि च सरीराण दव्वसुदस्सवि अचित्तपूजा सा। जा पुण दोण्ह कीरइ णायव्वा मिम्सपूजा मा ।
-वमुनन्दियाव। अर्थात्-द्रव्यसे और द्रव्यकी जो पृजाकी जाती है, उसको द्रव्यपूजन कहते है । जलचदनादिकमे पूजन करने को द्रव्यसे पूजन करना कहते है
और द्रव्यकी पूजा सचित्त, अचित्त और मिश्रके भदसे तीन प्रकार है । साक्षात् श्रीजिनेद्रादिके पूजनको सचित्त द्रव्यपूजन कहते हे । उन जिनेद्रादिके शरीरो तथा द्रव्यश्रुतके पूजनको अचित्त द्रव्यपूजन कहते है और दोनोके एक साथ पूजन करनेको मिश्रद्रव्यपूजन कहते है । द्रव्यपूजनके आगमद्रव्य और नोआगमद्रव्य आदिके भेदसे और भी अनेक भेद है। ४ "जिणजणमणिक्खवणणाणु'पत्तिमोक्खसपत्ति ।
णिसिही मुग्वेत्तपूजा पुव्वविहाणेण कायव्वा ॥-वसुनदि श्रा०। । अर्थात्-जिन क्षेत्रोमे जिनेद्र भगवानके जन्म-तप-ज्ञान-निर्वाण कल्याणक हुए है, उन क्षेत्रोमे जलचदनादिकसे पूजन करनेको क्षेत्रपूजन कहते है।