________________ निवेदन। - विगत वर्ष जब यह सुन्दर काव्य जैनहितैषीद्वारा प्रकाशित हुमा, तब काव्यप्रेमी महाशयोने इसे बहुत पसन्द किया और हमसे प्रेरणा की कि, इसे जुदा पुस्तकाकारमे प्रकाशित करना चाहिये। तदनुसार आज यह पृथक् पुस्तकस्वरूपमें प्रकाशित होता है। इस काव्यका मूलपाठ हमको बसवा जिला जयपुर निवासी श्रीयुत प० सुन्दरलालजीसे प्राप्त हुआ था, इसलिये हम उनके चिरकृतज्ञ रहेंगे। इसके अनुवादमे पहिली बार जो अशुद्धिया रह गई थीं, वे अबकी बार ठीक कर दी गई है। इस कार्य हमें जटौआ (आगरा) निवासी प० रामप्रसादजीसे बहुत सहायता मिली है। उनके हम बहुत आभारी है। देवरी (सागर) कार्तिकशुक्ला. 14 / श्रीवीरसवत् 2438) निवेदकनाथूराम प्रेमी