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को सांसारिक धंधों में न फंसावें, अपने आत्मा की ओर ध्यान लगाए और अपनी प्रकृति को अर्हत् सिद्ध आचार्य उपाध्याय और साधु महात्माओं की ओर प्रवृत्त करें, इसलिए कि हमारे आचरण शुद्ध हो जाएं और हम परमात्मा में मम होकर उत्तम भावों के द्वारा मोक्ष प्राप्त कर ले |
तुम्हे चाहिये कि अपने मन के भीतर विचार करो अर्थात् मन में खोजो संसार के कोलाहल और झगडों से अपनी आखे मूंद लो और भीतर की आखें खोल लो, अपने आत्मारूपी समुद्र की
घी गहराइयों मे पहुंचकर उस की थाह वा तल मे डुबकी लगाओ, और इस प्रकार अपने भीतर विचार करने से तुम्हे वह परम सुख और सच्चा आनन्द प्राप्त होगा जो इस ससार के क्षणभङ्गुर आनन्द से करोडों गुणा बढकर है । यह तुम्हारा आनन्द इतना उत्तम होगा जितना कि सूर्य का प्रकाश दीपक की मध्यम लौ या चमक से अत्यन्त उत्कृष्ट है । देखो भर्तृहरिजीने अपने वैराग्यशतक में क्या ही सुन्दर कहा है
भोगा मेघवितानमध्यविलसत्सौदामिनीचञ्चला,
आयुर्वायुविघट्टिताभ्रपटली लीनाम्बुवद्भङ्गुरम् । लोला यौवनलालना तनुभृतामिन्याकलय्य द्रुतम्, योगे धैर्यसमाधिसिद्धिसुलभे बुद्धिं विदद्धं बुधाः ॥ जिसका हिन्दी भाषा मे यह अर्थ है, विषय भोग विलास चादलरूपी चंदोए के मध्य में चमकती हुई बिजली की नाई चञ्चल हैं; श्रायुः पवन से बिखरे हुए बादलों की पक्ति में संचित जल के समान नाशवान् है; और प्राणियों की यौवन अवस्था का आनन्द