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विनाशीक ही है अर देहका कृतमपणा प्रकट दीखे है तदि अविनाशी पदके अर्थि उद्यमी होय है वीतरागता प्रगट होय है तदि ऐसा विचार उपजै है जो इस देहकी ममताकरि मैं अनंतकाल जन्ममरण नाना वियोग रोग संतापादिक नरकादिक गतिनिमैं दुःख भोगे अब भी ऐसे दुःखदाई देहमैं ही फेरि हू ममत्त्व करि आपाकू भूलि एकेंद्रियादि अनेक कुयोनिमैं भ्रमणका कारण कर्म उपार्जन करनेकू ममता करूं हूं जो अब इस शरीरमैं ज्वर कास श्रास शूल वात पित्त अतीसार मंदामि इत्यादिक रोग उपअँ हैं सो इस देहमैं ममत्वघटावनेके अर्थि बड़ा उपकार करें हैं धर्ममें सावधानता करावें हैं जो रोगादिक नहीं उपजता तो मेरी ममता हू देहतें नहीं घटती अर मद हू नहीं घटता मैं तो मोहकी अंधेरी करि आंधा हुवा आत्मा अजर अमर मान रखा था सो अब यो रोगनिकी उत्पत्ति मोकू चेत कराया अब इस देहळू अशरण जानि ज्ञान दर्शन चारित्र तपहीकू एक निश्चय शरण जानि आराधनाका धारक भगवान परमेष्ठीकू चित्तमैं धारण करूं हूं अब इस अवसरमैं हमारै एक जिनेंद्रका वचनरूप अमृत ही परम औषधि होहू जिनेंद्रका वचनामृत विना विषय रूपावरूप रोगजनित दाहके मेटनेईं कोऊ समर्थ