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और बात है और धर्म दूसरी वस्तु है। हमारे जैनियोंकी वर्तमान चौरासी खाप, जिनमें परस्पर रोटीबेटीका व्यवहार नहीं है, इस प्रश्नका यथेष्ट उत्तर दे रही हैं। इसके लिये हमको कोई नया मार्ग खोलने की आवश्यकता नहीं है। हमको उसी सनातन मार्गपर चल , मा होगा जिसपर हमारे पूज्य पूर्वजा और भाचार्याने गमन किया। है। हमारे लिये पहिलेहीसे सब प्रकारको सुगमताका मार्ग खुला दुमा है। हमको किसी भी कार्यके हिय अधिक चिन्ता करने वा कष्ट उठानेकी आवश्यकया नही है । इसलिये हपको बिलकुल निमय होकर साहस और धैयके साथ सब मनुष्योमें जैनधर्मका अप्रचार करना चाहिये । सबसे पहले लागोका श्रदान ठीक करना
चाहिये और उसक पश्चात् उनका माचरण सुधारना चाहिये। जैनी बनने के लिये इन्हीं दो बातोंको विशेष आवश्यकता है।
बोलो जैन धर्म की जय।
समाप्तमिति ।
Diwana
SMINE NRAO