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________________ अध्यात्म-रहस्य नहीं रहता और युक्तिवादके विना विषयको हृदयंगम करनेमें दृढता नहीं पाती-यह कोरी श्रद्धाको दृढ बनाती तथा उनकी साधनामें प्राणका संचार करती है। इसीसे श्रुतिके वाद मतिका स्थान रक्खा गया है। मंतिका दूसरा नाम 'धुद्धि' भी है, जिसका ग्रंथमें आगे प्रयोग किया गया है। 'मति' शब्द कहीं-कहीं स्मृति आदि दूसरे अर्थोंमें भी प्रयुक्त होता है। जैसाकि "मतिः स्मृतिः संज्ञा चिन्ताऽमिनिबोध इत्यनन्तरं" इस तत्त्वार्थसत्रसे जाना जाता है। यहाँ उसका प्रकृत अथवा प्रस्तुत अर्थ लेनेकी सूचनाके लिये ही मूलमें 'अनुमन्यता से पहले 'अत्र' शब्दका प्रयोग किया गया है। __ ध्यातिका लक्षण सन्तत्या वर्तते बुद्धिः शुद्धस्वात्मनि या स्थिरा। ज्ञानान्तरास्पर्शवती' साध्यातिरिह गृह्यताम् ॥८॥ 'जो बुद्धि सन्ततिसे-सन्तान-क्रम अथवा प्रवाहरूपसे-शुद्धस्वात्मामें स्थिर वर्तती है-अपने शुद्धात्माका अनुभव करती रहती है और ज्ञानान्तरका-शुद्धस्वात्माके ज्ञानसे मिन्न पर-पदार्थोके ज्ञानका स्पर्श नहीं करती उसे यहाँ "ध्याति' नामसे ग्रहण करना चाहिये। १ परद्रव्याऽस्पर्शवती स्वद्न्यस्पर्शवती इत्यर्थः ।
SR No.010649
Book TitleAdhyatma Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1957
Total Pages137
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size4 MB
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