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________________ उत्तर खण्ड अपने पति जम्बूकुमार से प्रतिबोध प्राप्त कर आठो नववधुओ को भी सन्मार्ग की प्रेरणा अवश्य हुई, किन्तु उनकी आत्मा का जागरण अभी पूर्णत. नही हो पाया था । वे अपने दुराग्रह पर दृढ भी थी और यह उनके लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न भी हो गया था कि किसी न किसी प्रकार से जम्बू कुमार को वे उनके निश्चय से विचलित कर दें । अव साक्षात्कार हो जाने पर वधुओ को यह विश्वास तो हो ही गया था कि जम्बकुमार के निश्चय मे दृढ़ता भी है और वास्तविकता भी-वे किसी अन्य प्रयोजन से इस प्रकार का बहाना नहीं कर रहे हैं। ऐसी परिस्थिति मे इन वधुओ को अनुभव होने लगा कि साधारण प्रयत्नो से उन्हे उनके उद्देश्य मे सफलता नही मिल सकेगी। पूर्ण शक्ति और सामर्थ्य का प्रयोग करने के विचार से इन श्रेष्ठिकन्याओ ने अपने ज्ञान और अनुभवो के आधार पर ऐसे तर्क सोचे, जिन्हे प्रस्तुत कर वे अपने पति को उसके मार्ग से विमुख कर सकें। अपने तर्कों को और अधिक प्रभावपूर्ण और वजनदार वनाने के उद्देश्य से उन्होंने अपनी धारणाओ को दृष्टान्तो के माध्यम से प्रस्तुत किया । बारी-बारी से एक-एक वधू अपना प्रयत्न करती गयी और उत्तर में जम्बू
SR No.010644
Book TitleMukti ka Amar Rahi Jambukumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni, Lakshman Bhatnagar
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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