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वैराग्योदय | ३१
कैसे हो सकते है ? यह भी स्पष्ट होने लगा था कि इस जीवन के लिए दीर्घकालीन योजनाएँ बनाने मे ही मन मदा सक्रिय रहता है, मनसूबो का कोई आर-पार ही नही है, किन्तु जीवन की क्षण भगुरता के तथ्य से अपरिचित ऐसे मानव की दशा कितनी दयनीय है | वह बेचारा करुणा का पात्र है । आगामी पल कौन सी परिस्थितियाँ लेकर आने वाला है— कुछ भी निश्चय नही है । ऐसे नश्वर और अनिश्चित जीवन का विवेकपूर्ण उपयोग यही हो सकता है कि जिस महान प्रयोजन को पूरा करने के लिए यह जीवन मिला है, उसी की पूर्ति मे सारी शक्ति प्रयुक्त कर दी जाय । इस मार्ग में आने वाले भटकावो और छलावो से अप्रभावित रहे बिना ऐसा कर पाना सम्भव नही है । अत करणीय और अकरणीय, त्याज्य और ग्राह्य का विवेकपूर्ण निर्णय अपेक्षित है और दृढ़तापूर्वक करणीय और ग्राह्य को ही अपनाना आवश्यक है । जीवन की क्षणभंगुरता से निराश नही होना चाहिए । जीवन के इस लक्षण से तो मनुष्य को इस दिशा में प्रेरणा मिलनी चाहिए कि व्यर्थ समय और शक्ति का विनाश करने के स्थान पर उस परम ध्येय की उपलब्धि के लिए तुरन्त प्रयत्नरत हो जाना चाहिए । जो गिनती के पल हमें मिले है, वे इस उपलब्धि के पूर्व ही कही समाप्त न हो जायँ । यदि ऐसा ही घटित हो गया तो यह मानव देह धारण व्यर्थ हो जायगा आत्मा को इस अमूल्य अवसर का कोई लाभ नहीं होगा । तुरन्त ही हमे अपने लक्ष्य प्राप्ति के प्रयत्न में लग जाना चाहिए - श्वास-प्रश्वास की यह श्रृंखला न जाने कब खण्डित हो जाय । आर्य सुधर्मास्वामी की इस गम्भीर देशना