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________________ २२६ | मुक्ति का अमर राही : जम्बूकुमार 0 प्रश्नव्याकरणसूत्र प्रस्तुत आगम द्वादशागी का दसवां अग है । प्रस्तुत आगम मे आस्रव और सवर का सविस्तार वर्णन है। D विपाकसूत्र प्रस्तुत सूत्र द्वादशागी का ग्यारहवाँ अंग है । इसके दो श्रुत स्कन्ध हैं। प्रथम श्रुतस्कन्ध मे १० अध्ययन-१ मृगापुत्र, २ उज्झितकुमार, ३ अभग्नसेन, ४ शकट, ५ बृहस्पतिदत्त, ६ नन्दीवर्धन, ७ उम्बरदत्त, ८ शौर्यदत्त, ६ देवदत्ता, १०. अजुश्री। द्वितीय श्रुतस्कन्ध मे १० अध्ययन-१ सुवाहू, २ भद्रनन्दी, ३ सुजात, ४ सुवासवकुमार, ५ जिनदास, ६ धनपति, ७. महाबल, ८ भद्रनन्दी, ६. महाचन्द्रकुमार, १०. वरदत्तकुमार । - निरयावलिया आदि पाँच सूत्र [कप्पिया, कप्पवडसिया, पुफिया, पुप्फचुलिया, वण्हिदशा] निरियावलिया श्रुतस्कन्ध मे पाँच उपाग समाविष्ट हैं१ कल्पिका, २ कल्पवत सिका, ३ पुष्पिका, ४. पुष्पचूलिका, ५ वृष्णिदशा। कप्पिया निरियावलिया के प्रथम वर्ग के १० अध्ययन१ काल, २. सुकाल, ३. महाकाल, ४ कण्ह, ५ सुकण्ह, ६. महाण्कह, ७ वीरकण्ह, ८. रामकण्ह, ६ पिउसेनकण्ह, • महासेनकण्ह ।
SR No.010644
Book TitleMukti ka Amar Rahi Jambukumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni, Lakshman Bhatnagar
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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