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________________ २२२ | मुक्ति का अमर राही : जम्बूकुमार आगमों में आर्य जम्बू के पूछने का प्रकार जइ ण भन्ते ! समणेण भगवया महावीरेण जाव सपत्तेण दसमस्म अगस्स पण्हावागरणाण अयम? पण्णत्ते एक्कारसमस्स ण भन्ते ! अगस्स विवागसुयस्स समणेण जाव सपत्तेण के अट्ठ पण्णत्ते ? -हे भगवन् । प्रश्नव्याकरण नामक दशम अग के अनन्तर मोक्ष सम्प्राप्त श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने विपाक सूत्र नामक एकादशवे अग का क्या अर्थ फरयाया है ? आर्य सुधर्मास्वामी का उत्तर प्रदान करने का प्रकार तते ण अज्ज सुहम्मे अणगारे जम्बू अणगार एव वयासीएवखलु जबू | समणेण जाव सपत्तेण एक्कारसमस्म अगस्स विवागसुयस्स दो सुयखधा पण्णत्ता । --तदनन्तर आर्य सुधर्मा अनगार ने जम्बू अनगार के प्रति इस प्रकार कहा हे जम्बू । मोक्ष सम्प्राप्त श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने विपाकसूत्र नामक एकादशवें अग के दो श्रुतस्कन्ध प्रतिपादन किये है। [विपाक सूत्र] जैनागमो मे आर्य जवू से सम्बन्धित जो आगम हैं, उन आगमो का मक्षिप्त परिचय इस प्रकार जानना चाहिए । - ज्ञाताधर्मकथा द्वादशागी मे ज्ञाताधर्मकथा का छठवां स्थान है। इसके दो श्रुतस्कन्ध है । प्रथम श्रुतस्कन्ध मे १६ अध्ययन है और दूसरे श्रुतस्कन्ध मे १० वर्ग है।
SR No.010644
Book TitleMukti ka Amar Rahi Jambukumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni, Lakshman Bhatnagar
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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