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रानी कपिला की कथा | ११६
गये-नये की प्राप्ति की आकाक्षा से उसका मन शून्य होता तो स्वामी ! क्या उसे वह दुर्दिन देखना पडता । उसे राजा के यहाँ ही कौन सा अभाव था, किन्तु उसके मन मे सन्तोष कहाँ था ? इसीलिए तो मैं कहती हूँ कि कुमार | जो सुख आपको उपलब्ध है, उन्हे भोग कर सन्तोष धारण करो। नयी वस्तु को प्राप्त करने की आपकी कामना बडे दुखद परिणाम देगी और तब कपिला जैसी ही दशा आपकी भी हो जायगी । इस उपलब्ध को भी छोड़ दोगे और नवीन भी प्राप्त न हो पायेगा। अपने सकल्प पर फिर से विचार कर लीजिए और मेरी बात मानकर उस अनुपयुक्त और हानिकारक व्रत को त्याग दीजिए, ताकि आपको उसके दुष्परिणामस्वरूप फिर दुखी न होना पडे । पद्मसेना ने अन्त मे कहा कि कपिला की भूल की आप पुनरावृत्ति नहीं करे-इसी मे हम सबकी भलाई है।