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गया । अतः उत्तर प्रदेश से लेकर मेवाड प्रवेश तक की घटनाओ का इन प्रसगो मे सग्रह हो पाया है।
यद्यपि इस लम्बी अवधि मे मेरे सामने लिखने की बहुत कुछ सामग्री रही थी। पर मुझे इतना अवकाश ही कहां मिलता था कि मैं उसे जी भर कर लिख सकू । लम्बे-लम्बे विहार ही हमारे दिन का अधिक भाग डकार जाते । आहार के लिए वैठते तो उठने से पहले ही विहार का शब्दसकेत हो जाता । तव में कुछ लिखता भी तो कैसे लिखता? कभी-कभी विहार की थकान मानस में शुष्कता ला देती और मैं लिखने में अपने
आपको असमर्थ पाता । पर फिर भी सकेतो के आधार पर मैंने इसे यथा साध्य पूर्ण बनाने का प्रयत्ल किया है।
आचार्यवर के इन जीवन प्रसगो को लिखते समय स्थूल घटनाए मुझे श्रापित नही कर सकी है । मैंने इसे इतिहास के ढग से भी लिखने का प्रयास नहीं किया है । एक मुमुक्षु को प्राचार्यश्री के व्यक्तित्व में तथा उनके वातावरण मे जो कुछ ग्राह्य हो सकता है वही मैंने ग्रहण किया है । अत. पाठक इसमे इतिहास खोजने का उतना प्रयास न करें जितना कि आचार्यश्री के व्यक्तित्व को तथा उनके आन्दोलन को खोजने का करें।
-मुनि सुखलाल