________________
२७-१२-५६
कालपत्ते ने ५०० मील चल पाए हैं पर अभी तक महोत्सव का निश्चय नही हुआ है और यह निश्चय करना है भी कठिन । उतनी बढी याना में बहुत दूर पहले का निश्नय कर लेना सचमुच बना पाठिन काम है । पर यिना नत्र निर्धारण के नासिर प्रतिदिन यो विहार का भी क्या अनुमान लग सकता है । नीलिए प्राज प्रातःकाल गुरवन्दन के समय
आचायंत्री ने नभी माधुत्रों ने कहा- अब हमे योग प्रागे का लक्ष्य निर्धारित कर लेना चाहिए । पयोंकि उनके बिना हमारी गति में नियमितता नही पा सकती । अभी हमारे सामने मर्यादा-महोत्लव के दो विकल्प हैं। एक तो नन्दारमहर और दूसरा कही बीच का। मरदारशहर में महोत्सव के साथ-साप मुसलालजी स्वामी के अनगन का भी एक महत्व है। पर उसके लिए चलना भी बहुत अधिा पड़ेगा । येमे मुझे तो चलने में कोई वाघा नहीं है पर माधुरो की इन विषय में क्या राय है मैं यह जानना चाहता हूं। सभी साधुनों ने कहा-जहां प्राचार्यश्री चाहे हम लोग चलने के लिए तैयार हैं।
प्राचार्य श्री यह तो है ही। पर मैं पूछ रहा है कि इन विषय में उनकी अपनी क्या राय है?
कुछ माधुरो ने महोत्सव के लिए मरदारणहर को उपयुक्त माना । क्योकि मभी साधु-साध्वी वहा प्राचार्यश्री की प्रतीक्षा में उत्कठित सढ़े हैं। कुछ साधु इतने लम्बे चलने के पक्ष में नहीं थे । उनका कहना था कि इतना लम्बा चलना स्वय प्राचार्यश्री के स्वास्थ्य पर भी