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________________ १६६ मकान में ठहर गये । इधर-उधर से याते हुए भाई हमे वडी शका की दृष्टि से देखने लगे । समझने लगे कि महाराज कहा बैठे हैं ? पर हमे उनकी कोई परवाह नही थी । कुछ बहनो ने तो जो स्वय मेघवाल थी हमे कहा कि महाराज | यह तो भाभियो का घर है पर हमने उन्हे समझाया तौ वे समझ गई और हम अपना काम करते रहे । बीच-बीच मे गृहस्वामिनी जो एक प्रौढ महिला थी चर्चा छेड देतीमहाराज | आपके गुरु कौन हैं ? हम - हमारे गुरू ग्राचार्यश्री तुलसी हैं जो आज यहा तुम्हारे गाव मे ये हुए हैं। क्या तुमने उनके दर्शन नही किये ? बहन नही । हम क्यो ? बहन — इसलिए कि हम नही जानते कि वहां जाने का हमारा अधिकार है या नही । हम - वहा तो सबका अधिकार है और वह साधु ही क्या जो मनुष्य को अछूत कहकर उसका तिरस्कार करे । बहन पर क्या आचार्यश्री हमसे बोलेंगे ? हम क्यो नही ? तुम कहोगे तो हम तुम्हारा परिचय प्राचार्यश्री से करा दें । बहन - तब तो महाराज आचार्यश्री बडे पहुचे हुए महाराज हैं। हमारे गुरू तो ऐसे नही हैं । वे हमारे से रुपये पैसे भी लेते है और अछूत कहकर हमारा अपमान भी करते हैं । हम-तब तुम उनको गुरू मानते ही क्यो हो ? बहन - तो क्या करें महाराज । निगुरे (विना गुरू वाले) की गति ही जो नही होती । हम-ऐसी बात नही है हमारी दृष्टि से गति हो सकती है पर कुगुरे की गति नही हो तो निगुरे की तो फिर भी सकती। भला वह क्या
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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