SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४६ अन्य साधुनो की सेवा कर सफलता पाना सहज है पर मत्री मुनि की सेवा कर सफलता पाना जरा कठिन था। कारण यह था कि मत्री मुनि अपनी शारीरिक आवश्यकताओं के बारे मे कभी किसी से कुछ नहीं कहते । हमे ही उनकी आवश्यकतानो का ध्यान रखना पडता था। आचार्यश्री ने अपने प्रारब्ध प्रवचन को आगे बढाते हुए कहायद्यपि सेवा का कोई पारितोपिक नहीं होता । फिर भी सघ मे इस प्रवृत्ति को प्रोत्साहित रखने के लिए कुछ पारितोपिक भी देना चाहता हू । घोर तपस्वी मुनिश्री सुखलालजी ने तो अपना पारितोपिक अपने आप ले ही लिया । मुनि सोहनलालजी यदि प्राचार्यों के पास रहेगे तो सहाय्यपति रहेगे और अन्यत्र रहेगे तो सिंघाडपति रहेगे तथा तीन वर्षों तक अग्रगामी पर लगने वाला कर उन्हें नहीं चुकाना पडेगा । इसके साथसाथ मुनि सोहनलाल (लणकरणसर), मुनि नगराज, मुनि देवराज को भी तीन वर्ष की चाकरी माफ तथा पाच-पाच हजार गाथाए पारितोपिक । ___ प्राचार्यश्री मत्री मुनि के सस्मरण सुनाने मे इतने लीन हो गए कि घडी ने पूर्ण मध्यान्ह का सकेत कर दिया, इसका पता ही नही चला । श्रोता लोग भी उस स्मृति-सागर मे अपने पर पड़ने वाले समय सलिल के बोझ को जैसे भूल ही गए। उन्हें पता ही न चला कि वारह बज गए। आचार्यश्री के ससार पक्षीय बडे भाई मुनिश्री चम्पालालजी ने भी इस प्रसग पर मत्री मुनि से सबन्धित अपने कुछ अनुभव सुनाए । सरदारशहर के लिए यह पहला ही अवसर था ।
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy