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________________ १७-२-६० घोर तपस्वी का शरीर ज्यो-का-त्यो पड़ा था। पर चैतन्य उसमे से निकल चुका था । एक नन्ही-सी अदृश्य चेतना कितने बडे पुद्गल पिंड को अपने पीछे खीचती रहती है. इसका यह स्पष्ट प्रमाण था । पर यह तो जीवन की अनिवार्य शर्त है । अत आज प्रातःकाल एक विशाल जनसमूह के बीच उनकी अत्येप्टि कर दी गई। इससे पहले श्रावक लोग प्रायः मृत साघुरो के पीछे रुपयो की उछाल किया करते थे। पर इस अवसर पर वह नही की गई । आचार्यश्री ने भी इसे उपयुक्त ही बताया। कुछ लोगो को यह नवीन परम्परा अजीब-सी अवश्य लगी पर सत्य को आखिर अस्वीकार कैसे किया जा सकता था? सहस्रो नेत्र उस तप पूत को अग्नि की लपटो मे झुलसते हुए देखकर अश्रु-प्रवाह को नहीं रोक सके। पर जिन्होने मृत्यु को महोत्सव मान कर उसका स्वागत किया था उसके लिए प्रासू वहाना क्या ठीक है ? कोई यदि अनशन नहीं भी कर सके तो भी उसे उनसे प्रेरणा तो लेनी ही चाहिए कि सहज रूप से आने वाली मृत्यु के क्षणो मे वह अपने धैर्य को न खोये। वैसे तो जीवन के आदि क्षण से ही हम प्रतिक्षण मृत्यु की ओर अग्रसर होते रहते है । बहुधा दीपक जलकर राह दिखाता है, पर कभी-कभी वह वुझ कर ऐसी राह दिखा देता है कि भटकते हुओ को सहज ही मार्ग मिल जाता है । घोर तपस्वी ने अपने जीवन से अनेको को सन्मार्ग की ओर प्रवृत्त किया था और अब वे निर्वृत्त होकर सहस्रो लोगो के लिए आलोकदीप का काम कर रहे थे। उस महान् आत्मा को कौन अपनी श्रद्धाजलि नही समर्पित करना चाहेगा?
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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