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________________ १५-२-६० साधुओं के एक हाथ मे विदाई है और दूसरे हाथ मे स्वागत है। स्वागत शब्द आज एक समारोह के अर्थ मे रूढ हो गया है । पर साधुनो का तो यदि वे सही अर्थ मे साधु है, तो पग-पग पर स्वागत ही है। स्वागत माने मन मे रही श्रद्धा की अभिव्यक्ति । साधुनो के प्रति जनता मे स्वाभाविक श्रद्धा होती है वह स्वागत ही तो है । आचार्यश्री इस रूढिगत स्वागत को अधिक महत्त्व नहीं देते । पर वे श्रद्धालु लोगो की भावना को तोडना भी नहीं चाहते। इसीलिए आज भी स्वागत का कार्यक्रम रखा गया था । अनेक संस्थानो की सक्रियता का एक अग यह भी है कि किसी विशेष व्यक्तित्व के सम्पर्क से वे अपनी गति-विधि को केन्द्रित कर सकें। इसीलिए आज अनेक सस्थाओ ने आचार्यश्री का स्वागत किया। मुनिश्री चम्पालालजी तथा मुनिश्री चन्दनमलजी ने भी अपनी सुमधुर सगीत ध्वनि से वातावरण को एक वार झकृत कर दिया। नगरपालिका के अध्यक्ष श्री दुर्गादत्तजी ने अभिनन्दन-पत्र पढा । दूसरे प्रहर मे स्वागत हुआ था तो तीसरे मे विदाई हो गई । जब तक आचार्यश्री नही पधारे थे तब तक प्रतीक्षा थी। प्रतीक्षा ने आगमन को अवसर दिया, आगमन ने विदाई को अवसर दिया और विदाई ने फिर प्रतीक्षा को अवसर दे दिया। चुरू एक बहुत बडा क्षेत्र है। यहा अधिक दिनो तक रहना आवश्यक था । पर उधर तपस्वी मुनि की स्थिति ने प्राचार्यश्री के पैरो मे गति भर रखी थी। इसीलिए आचार्यश्री यहा अधिक नही
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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