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________________ १३४ पडा । लेकिन उससे भी बढकर जो एक सवेदन मन को स्पृष्ट कर रहा था-वह यह था कि भिक्षुक के दान पाने की अपेक्षा दानी दान देने के लिए अधिक आतुर थे। जहा प्राप्ति की आकाक्षा रहती है वहा हाथ स्वय ही रुक जाता है । इसीलिए तो कहा गया है-त्याग ही सबसे बड़ी प्राप्ति है। हमने अनेक बार देखा है सदावतो मे ढोगी साधु बार-बार पक्ति मे बैठकर दान पाना चाहते हैं। इसलिए उनकी भयकर भर्त्सना होती है । सच्चे साधु कुछ लेना नहीं चाहते तो उनकी मनुहारे होती हैं । तेरापथ समाज की दान-पद्धति सचमुच बडी वेजोड है। वह इसलिए नहीं कि हम तेरापथी हैं पर इसलिए कि उसके कारण दाता दान देकर अपने को उपकृत समझता है।
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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