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३०-१-६०
वहादुरगढ, रोद, कलावर होते हुए आज शाम को आचार्यश्री रोहतक पधारे। रोहतक से तीन मील पूर्व हासीवासियो का एक दल सेवा मे पहुच गया था। उनका उत्साह सराहनीय है। इसी कारण शायद इस वार के महोत्सव का अवसर उन्हे मिला । आज रात मे भी भिवानी के कुछ भाइयो ने आचार्यश्री को भिवानी पधारने की जोरदार विनती की। उन्होने कहा-लाला सतराम तथा लाला पेशीराम ने बहुत जोर देकर प्रार्थना करवाई है कि हम अभी बीमार है अत प्राचार्यश्री को हर हालत मे हमे दर्शन देने होंगे।
लाला पेशीराम का स्वास्थ्य तो काफी गिर गया था । अत उन्होंने अपने पुत्र मातुराम को विशेष रूप से प्रार्थना करने के लिए भेजा था। पर प्राचार्यश्री ४ तारीख तक हासी पहुचने के लिए वचनबद्ध हो चुके थे । अत. वे उस प्रार्थना को स्वीकार नहीं कर सके । हालाकि भिवानी जाने मे १२ मील का चक्कर भी पड़ता था, आचार्यश्री उसे भी लेने के लिए प्रस्तुत थे। इसीलिए आचार्यश्री ने कहा-अपने भक्तजनो की सुधि लेने मे मुझे १२ ही नही २५ मील भी जाना पडे तो स्वीकार है। पर अपनी कही हुई वात का पालन तो मुझे करना ही चाहिए। __एक ओर जहां लाखो व्यक्ति कही हुई ही नहीं अपितु लिखी हुई बात से भी इन्कार होने मे सकोच अनुभव नही करते, वहां प्राचार्यश्री अपनी सभावित घोपरणा को भी अन्यथा नहीं होने देने का प्रयत्न कर रहे हैं।