________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सेनगण
३३
प्रतिष्ठा कारंजा मे हुई थी । शक १५८१ की फाल्गुन शुक्ल १३ को चवर्या माणिक ने रत्नाकर विरचित समवशरण पाठ की एक प्रति आप को अर्पण की (ले. ४७ ) । शक १५८२ की फाल्गुन शुक्ल ७ को आपने एक पार्श्वनाथ मूर्ति स्थापित की (ले. ४८ ) । इसी प्रकार शक १६०७ मे जाली ग्राम मे आप ने एक मूर्ति प्रतिष्ठित की ( ले. ४९ ) । अचलपुर मे आप को एक बार सर्पदंश हुआ और दूसरी बार धोखे से भोजन में बचनाग की बाधा हुई किन्तु दोनों बार विषापहार स्तोत्र के पठन से ही आप नीरोग हो गये । आप हूंबड जाति के रायमल साह के पुत्र थे । आप की जन्मभूमि खंभात थी । आप का विद्याभ्यास पद्मनंदिजी के पास और पट्टाभिषेक कारंजा मे हुआ था । आप ने गिरनार, सम्मेद शिखर, माणिक्यस्वामी आदि यात्राएं कीं । आप के द्वारा सोयरासाह, निवासाह, माधव साह, गनबासाह और कान्हासाह इन पांच व्यक्तियों को संघपति पद प्राप्त हुआ। अंतिम समारोह रामटेक मे हुआ था (ले. ५० ) । पूरनमल ने आप की स्तुति की है. ( ले. ५१ ) और आप की मयूरपिच्छी का उल्लेख किया है ।
जिनसेन के उत्तराधिकारी समन्तभद्र हुए। इन का कोई उल्लेख नही मिला है। इन के बाद छत्रसेन भट्टारक हुए। आप ने संवत १७५४ मे एक पार्श्वनाथमूर्ति स्थापित की (ले. ५२ ) । आप का निवास कारंजा मे था (ले. ५३ ) | द्रौपदीहरण, समवशरण षट्पदी, मेरुपूजा, पार्श्वनाथपूजा, झूलना, अनंतनाथ स्तोत्र और पद्मावती स्तोत्र ये कृतियां आप ने लिखीं (ले. ५३-५९) । आप के शिष्य हीरा ने संवत् १७५४ मे कडतसाह से प्रेरणा पाकर वृधणपुर मे अनिरुद्धहरण की रचना की (ले. ६० ) । छत्रसेन की एक आरती भी उपलब्ध है ( ले. ६१ ) | अर्जुनसुत और बिहारीदास ने आप की प्रशंसा की है (ले. ६२, ६३ ) ।
१५ संभवत: बलात्कार गण-३ ग-ईडर शाखा के रामकीर्ति के पट्टशिष्य पद्मनंदि ही यहां उल्लिखित हैं ।
१६ यह संभवत: बुम्हाणपुर का संस्कृत रूपांतर है ।
For Private And Personal Use Only