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भट्टारक संप्रदाय लेखांक ७३६ -
इंद्रभूषण सूरिराय पाय विद्वज्जन वंदित । राजकीर्तिनो शिष्य वैश्यमत दूरे स्थापित ।। सकलदेशमाहे प्रगट कविजनमाहे मानती। जिनसेन कहे मूलसंघ सेनगण बारबार करती स्तुती ॥ १४
(म. ४९) लेखांक ७३७ -
श्रीकाष्ठासंघ नाम प्रथम गोत्र पंचवीस । मूलसंघ उपदेश गोत्र अंते सत्तावीस ।। बघेरवाल बड ज्ञाति गोत्र बावण गुणपूरा । धर्मधुरंधर धीर परम जिण मारग सूरा ॥ महाव्रतधारक श्रीभट्टारक लक्ष्मीसेनय जानिये । गुरु इंद्रभूषण गंगसमसुगुण नरेंद्रकीर्ति बखाणिए ॥ ११२
( म. ४९) लेखांक ७३८ - गुरुस्तुति
स्वस्ति स्यात्यदलांछिते वरगणे काष्ठादिसंघे सुधीः ख्यातः प्रीतमना नृणां बहुमतः श्रीराजकीर्तिस्ततः । लक्ष्मीसेनविभुस्ततोथ विलसच्छ्रीजैनभूषामणिः जीयाद् वासवभूषणश्च सुकृतेर्बीजस्य रक्षामणिः ।।
(म. १०८) लेखांक ७३९ -
काष्ठासंघ गछांबर ए मुनि सुंदर इंदु सो इंद्रभूषण विराजे । सुमत्यब्धि कहे गछपति समो अन्य कोइ नहीं अवनी मान पावे ।।१४
( म. ४९) लेखांक ७४० -
श्रीराजकीर्ति सिष्यह सुगुण लक्ष्मीसेन पट्टोधरण ।
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