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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काष्ठासंघ-लाडबागड-पुनाट गच्छ २५९ अनन्तकीर्ति के शिष्य विजयसेन ने वाणारसी में पांगुल हरिचन्द्र राजा की सभा में चन्द्र तपस्त्री का पराजय किया (ले. ६३०)। इन के शिष्य चित्रसेन के समय से इस संघ का पुन्नाट संघ यह नाम लुप्तप्राय हुआ (ले. ६३१)। चित्रसेन ने एकान्तर उपवासादि कठोर तपश्चर्या की। इन के पट्टशिष्य पद्मसेन हुए। आप के शिष्य नरेन्द्रसेन ने शास्त्रविरुद्ध उपदेश करने वाले आशाधर को अपने संघ से बहिष्कृत किया (ले. ६३२)। नरेन्द्रसेन ने रत्नत्रयपूजा की रचना की (ले. ६३३ )। इन के शिष्य कल्याणकीर्ति ने वीतरागस्तोत्र की रचना की (ले. ६३४)। पद्मसेन के बाद क्रमशः त्रिभुवनकीर्ति और धर्मकीर्ति भट्टारक हुए । धर्मकीर्ति के समय संवत् १४३१ में केशरियाजी तीर्थक्षेत्र पर विमलनाथ मन्दिर का निर्माण हुआ (ले. ६३७) । धर्मकीर्ति के तीन शिष्य हुए- हेमकीर्ति, मलयकीर्ति तथा सहस्रकीर्ति । ये तीनों गुजरात प्रदेश में विहार करते थे । दिल्ली के साह फेरू ने संवत् १४९३ में श्रुतपंचमी उद्यापन के निमित्त मूलाचार की एक प्रति मलयकीर्ति को अर्पित की (ले. ६३८ ) । मलयकीर्ति ने एलदुग्ग के राजा रणमल को उपदेश दे कर तरसुंबा में मूलसंघ का प्रभाव कम किया तथा शान्तिनाथ की विशाल मूर्ति स्थापित की (ले. ६३९) । ११३ । मलयकीर्ति के पट्टशिष्य नरेन्द्रकीर्ति हुए। आप ने कलबुर्गा के पिरोजशाह की सभा में समस्या पूर्ति कर के जिनमन्दिर का जीर्णोद्धार १२१ कनौज के गाहडवाल राजा हरिश्चन्द्र- सन ११९३-१२०० ई.। १२२ समय के अनुमान से पण्डित आशाधर का ही यह उल्लेख होना चाहिए। किन्तु इसे अन्य उल्लेखों से कोई पुष्टि नहीं मिलती। १२३ ईडर के राजा रगमल- १३४५-१४०३ ई. । यही घटना ले.६४१ में मलयकीर्ति के पट्टशिष्य नरेन्द्रकीर्ति के विषय में कही गई है। १२४ बहामनी बादशाह फिरोज- सन १३९७-१४२२ । For Private And Personal Use Only
SR No.010616
Book TitleBhattarak Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV P Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1958
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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