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भट्टारक संप्रदाय
पुराण और कथाएं साधारणतः जिनसेन कृत हरिवंशपुराण, रविषेण कृत पद्मपुराण तथा जिनसेन कृत महापुराण के आधार पर लिखी गई। संस्कृत में ईडर शाखा के भ. सकलकीर्ति और भ. शुभचन्द्र के विभिन्न पुराण ग्रन्थ उल्लेखनीय हैं । अपभ्रंश में माथुर गच्छ के भ, अमरकीर्ति, भ. यशःकीर्ति और पंडित रइधू की रचनाएं अच्छी हैं । हिन्दी में शालिवाहन, खुशालदास आदि कवि प्रमुख हैं। राजस्थानी में ब्रह्म जिनदास के रास ग्रन्थ बहुत सुन्दर हैं। गुजराती में सूरत शाखा के भ. वादिचन्द्र, जयसागर और नन्दीतट गच्छ के धनसागर तथा भ. चंद्रकीर्ति की रचनाएं उल्लेखनीय हैं। मराठी में पार्श्वकीर्ति, गंगादास, जिनसागर और महतिसागर ये चार लेखक विशेष लोकप्रिय हो सके थे।
__ पूजापाठों में अष्टक, स्तोत्र, जयमाला, आरती, उद्यापन ये मुख्य प्रकार थे। जिन मूर्तियों और यंत्रों की प्रतिष्ठा भट्टारकों द्वारा हुई उन सब के अस्तित्व को बनाये रखने के लिए ये पूजापाठ नितान्त आवश्यक थे । पूजनीय व्यक्ति या तत्त्व की अपेक्षा पूजा के द्रव्य का अधिक वर्णन करना इस युग के पूजापाठों की विशेषता कही जा सकती है । इन की दूसरी विशेषता इन की गेयता है । छोटे बडे विविध मात्राओं के छंदों में रची होने से बहुधा सामान्य आशय की पूजा भी बहुत आकर्षक मालूम पडती थी। गुजराती और राजस्थानी के पुराण ग्रन्थों में और खास कर रास ग्रन्थों में भी यह गेयता मौजूद है जिस से उन की लोकप्रियता बढी है।
इन प्रमुख विभागों के बाद न्यायशास्त्र में भ. धर्मभूषण कृत न्यायदीपिका और भ. शुभचन्द्र कृत संशयिवदनविदारण उल्लेखनीय हैं। आचारधर्म पर षट्कर्मोपदेश, धर्मसंग्रह और त्रैवर्णिकाचार ये ग्रन्थ इस युग के प्रातिनिधिक कहे जा सकते हैं । सकलकीर्ति के मूलाचारप्रदीप में मुनिधर्म का वर्णन हुआ है । कर्मशास्त्र पर ज्ञानभूषण और सुमंतिकीर्ति की कर्मकाण्ड टीका एकमात्र उल्लेखयोग्य ग्रन्थ है। प्राकृत का एक व्याकरण भ. शुभचन्द्र ने और दूसरा एक श्रुतसागरसूरि ने लिखा है । अकारान्त क्रम से लिखा हुआ संस्कृत शब्दों का कोष विश्वलोचन श्रीधरसेन की एकमात्र रचना है। हिन्दी में भगवतीदास ने अनेकार्थनाममाला कोष लिखा है। ज्योतिष और वैद्यक पर भी उन के ही ग्रन्थ हैं। गणितज्योतिष में भ.ज्ञानभूषण के कार्य का उल्लेख मिलता है किन्तु उन के कोई ग्रन्थ उपलब्ध नहीं होते । इन के अतिरिक्त कैलास, समवसरण आदि अनेक स्फुट विषयों पर छोटी छोटी कविताओं की रचना की गई है ।
प्राचीन ग्रन्थों के हस्तलिखितों की रक्षा यह भट्टारकों के कार्य का सब से
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