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बलात्कार गण-सूरत शाखा आप हूंबड जाति के थे ( ले, ४९८) । आप की आम्नाय में ब्र. विद्यासागर ने संवत् १६६४ में पंचस्तवनावचूरि की एक प्रति सूरत में प्राप्त की (ले. ४९७ )।"
वादिचन्द्र के पट्ट पर महीचन्द्र आरूढ हुए। आप ने संवत् १६७९ में एक चन्द्रप्रभ मूर्ति तथा संवत् १६८५ में एक सम्यग्ज्ञान यन्त्र स्थापित किया (ले. ४९९-५००)।
महीचन्द्र के शिष्य मेरुचन्द्र हुए । आप के गुरुबन्धु जयसागर ने संवत् १७२२ में एक पद्मावती मूर्ति स्थापित की ( ले. ५०२ ) । इन ने संवत् १७३२ में सूरत में सीताहरण लिखा, संवत् १७३२ में ही अनिरुद्ध हरण लिखा तथा घोघा में सगरचरित्र की रचना की" (ले. ५०३-५)। पट्टावली से विदित होता है कि मेरुचन्द्र हूंबड जाति के थे (ले. ५०६)। आप ने षोडशकारण पूजा लिखी (ले. ५०१ )।
मेरुचन्द्र के बाद जिनचंद्र और उन के बाद विद्यानन्दी पट्टाधीश हुए । आप ने संवत् १८०५ में सूरत में एक आदिनाथ मूर्ति स्थापित की (ले. ५०७ )। आप के शिष्य जिनदास ने नागपुर में संवत् १८२२ में आराधना की एक प्रति लिखी (ले. ५०८)।
विद्यानन्दि के पट्टशिष्य देवेन्द्रकीर्ति हुए । संवत् १८४२ में इन ने गणितसारसंग्रह की एक प्रति अपने शिष्य विद्याभूषण को दी। विद्याभूषण खंडेलवाल जाति के थे (ले. ५०९-११ )।
८८ वादिचन्द्र के लिए पं. नाथूराम प्रेमी का लेख देखिए ( जैन साहित्य और इतिहास पृ. २६८)। बम्बई से काव्यमाला के १३ वें गुच्छक में प्रकाशित पवनदूत काव्य सम्भवतः आप की ही रचना है ।
८९ सगरचरित्र में भी रचना काल दिया है किन्तु उस का अर्थ हमें स्पष्ट नहीं हो सका। ..
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