________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
- ५०४] ११. बलात्कार गण-सूरत शाखा लेखांक ५०२ - पद्मावती मूर्ति
___ सं. १७२२ जेठ सुदी २ मूलसंघे भ. श्रीमेरुचंद्रपट्टे साहश्रीसिंहपुरा ज्ञातीय प्रेम जीवाभाईसुत भ. श्रीमहीचंद्रशिष्य ब्र. जयसागर प्रणमति ॥
( सूरत, दा. पृ. ५६) लेखांक ५०३ - सीताहरण
मूलसंघे सरस्वतीवर गछे बलात्कारगण सार जी । गंधार नयरे प्रत्यक्ष अतिशय कलियुगे छे मनोहार जी ॥ ...प्रभाचंद्र गोर तनेया वानी अमिय रसाल जी । वादीचंद्र वादी बहु जीत्या घट सरस्वती गुनमाल जी ॥ महीचंद्र मुनि जनमन मोहन वानी जेह विस्तार जी। परवादीना मान मुकाव्या गर्व न करे लगार जी ।। मेरुचंद्र तस पाटे सोहे मोह भवियन मन जी। व्याख्यान वानि अमिय रसाली सांभलो एके मन जी ॥ गोरमहीचंद्र शिष्य जयसागरे रच्यू सीताहरण मनोहार जी। ...संवत सत्तर बत्तीसा वरसै वैशाख सुद्ध बीज सार जी। बुधवारे परिपूर्णज रचयु सूरत नयर मझार जी ॥ आदिजिनेश्वर तणे प्रासादे पद्मावती पसाय जी । सांभलता गाताय सहुने मन माहे आनंद थाय जी॥
परिच्छेद ६ (ना. २५)
लेखांक ५०४ - अनिरुद्धहरण
तेह पाटे महीचंद्र भट्टारक दीठे जन मन मोहे जी। मेरुचंद्र तस पाटे जाणो वाणी अमी रस सोहे जी ॥ गोर महीचंद्र सिष्य एम बोले जयसागर ब्रह्मचारि जी। ...संवत सत्तर बत्तीस माहे मागसिर मास भृगुवार जी। सुदि तेरसि रचना रची पूर्ण ग्रंथ थयो सार जी ॥ सुरत नयर माहे तम्हे जाणो आदि जिन गेह सार जी ।
For Private And Personal Use Only