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बलात्कार गण-भानपुर शाखा
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इन के बाद रत्नचन्द्र भट्टारक हुए। आप ने संवत् १६७४ की ज्येष्ठ कृ. ५ को जिन चौवीसी की रचना त्रिपुरा शहर में की। आप ने संवत् १६७६ में कोई मूर्ति स्थापित की तथा संवत् १६८१ में सागवाडा में पुष्पांजलि पूजा लिखी (ले. ४१०-१२ )। संवत् १६९२ की वैशाख शु. ५ को एक पार्श्वनाथ मूर्ति स्थापित की (ले. ४१३ )। आप का पट्टाभिषेक संवत् १६७० में सागवाडा में हुआ उस समय अन्य शाखा के साधुओं ने उस का विरोध करने का प्रयास किया था । आप का स्वर्गवास संवत् १७०७ में नोगाम में हुआ (ले. ४१४)। आप का पट्टाभिषेक भट्टारक हेमकीर्ति ने किया था (ले. ४१५)।
रत्नचन्द्र ने संवत् १६९९ की ज्येष्ठ शु. ५ को अपने पट्ट पर हर्षचन्द्र की स्थापना कर दी थी (ले. ४१४)। ये खण्डेलवाल जाति के थे (ले. ४१६ )।
- इन के पट्ट पर शुभचन्द्र संवत् १७२३ की वैशाख कृ. ५ को घाटोल ग्राम में आरूढ हुए। इन का स्वर्गवास मेलुडा ग्राम में संवत् १७४९ की आश्विन कृ. १३ को हुआ (ले. ४१७-१८)। इन के बाद संवत् १७४८ की माघ शु. १० को मेलुडा में अमरचन्द्र का पट्टाभिषेक हुआ (ले. ४२०)। __अमरचन्द्र के पट्ट पर रत्नचंद्र आरूढ हुए । इन के उपदेश से संवत् १७७४ की माघ शु. १३ को देवगढ में रावत पृथ्वीसिंह के राज्यकाल में मल्लिनाथ मन्दिर का निर्माण संघवी वर्षावत ने किया (ले. ४२२)। रत्नचन्द्र का स्वर्गवास कोठा में संवत् १७८६की माघ कृ.६को हुआ (ले.४२३)।
रत्नचन्द्र के पट्ट पर संवत् १७८७ की वैशाख शु. १३ को भानपुर में भ. देवचन्द्र का अभिषेक हुआ। इन का स्वर्गवास जाम्बूचर ग्राम में संवत् १८०५ की माघ कृ. ७ को हुआ ।
७० संवत् १६७० में कौन हेमकीर्ति भट्टारक थे यह हमें स्पष्ट नहीं हो सका।
७१ बुन्देले छत्रसाल के ये पौत्र थे। इन के पुत्र पहाडसिंह की मृत्यु सन १७६६ में हुई थी।
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