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भट्टारक संप्रदाय
[३४६ -
लेखांक ३४६ - कर्मविपाक रास
सरस्वति स्वामिणि सरस्वति स्वामिणि तणइ पसाइ । रास कियो मि निरमलो करमविपाकतणो निरमलो।
ते कर्मक्षय कारणि ।। सुणो भवियण तम्हे मनोहार । श्रीसकलकीरति पाय प्रणमीनि मुनि भुवनकीरति भवतार । ब्रम्ह जिणदास म्हणे वांदिस्यु मागिस्यु तम्ह गुण सार ।।
[ना. ७] लेखांक ३४७ - धर्मपरीक्षा रास
श्रीगणधर स्वामी नमसकरू श्रीसकलकीरति भवतार । मुनि भुवनकीरति पाय प्रणमीनि कहिलूं रासहु सार ॥१ धरमपरीक्षा करूं निरमली भवियण सुणो तम्हे सार । ब्रम्ह जिणदास कहि निरमलो जिम जाणो विचार ॥ २
[ना. ३८] लेखांक ३४८ - जंबूस्वामी रास
श्रीसकलकीरति गुरु प्रणमीने हो भुवनकीरति गुरु वांदि ।
रास कियो मई निरमलो हो जंबूकुंअरनु आदि । .. 'पढइ गुणइ जे सांभलि तेह घरि ऋद्धि अनंत । . ब्रम्ह जिणदास इणि परि भणि मुगति रमणी होइ कंत ॥
[ना. ३७] लेखांक ३४९ - जीवंधर रास
जीवंधर स्वामी तणो मि रास कीधो सरस सोहावणो । सरस्वति तणइ पसाइ निरमल कामदेव गुरु वरणव्या । श्रीसकलकीरति गुरु प्रणमीने वली भुवनकीरति भवतार । ब्रम्ह जिणदास भणे निरमलो पढो तम्हे भवियण सार ।
[ना, ३६]
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