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भट्टारक संप्रदाय
स्थानान्तरित हुआ तथा अतिशय क्षेत्र महावीरजी से इस पीठ का सम्बन्ध स्थापित हुआ।
सुरेन्द्रकीर्ति के बाद संवत् १८५२ की फाल्गुन शु. ४ को पट्टाधीश हुए । आपने संवत् १८६१ की वैशाख शु. ५ को सवाईजयपुर में कोई मूर्ति स्थापित की [ ले. २७५ ] । इन्ही के समय संवत् १८६८ की ज्येष्ठ शु. ४ को बृहत् कथाकोष की एक प्रति वहीं लिखी गई (ले. २७६ )।
सुरेन्द्रकीर्ति के बाद क्रमशः संवत् १८८० में नरेन्द्रकीर्ति, संवत् १८८३ में देवेन्द्रकीर्ति, संवत् १९३९ में महेन्द्रकीर्ति और संवत् १९७५ मे चन्द्रकीर्ति भट्टारक हुए।
बलत्कार गण-दिल्लीजयपुर शाखा-कालपट
१ पद्मनन्दी २ शुभचन्द्र(संवत् १४५०--१५०७) ३ जिनचन्द्र(संवत्१५०७-१५७१)
रत्नकीर्ति सिंहकीर्ति
(नागौर शाखा) (अटेर शाखा) ४ प्रभाचन्द्र [संवत् १५७१-८०] ५ चन्द्रकीर्ति [ संवत् १६५४ ]
६ देवेन्द्रकीर्ति
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