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बलात्कार गण- कारंजा शाखा
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माणिकनन्दि ने शक १६४६ की भाद्रपद शुक्ल १४ को अनन्तनाथ आरती की रचना की [ ले. १६२ ]
म. देवेंद्रकीर्ति के शिष्यों में जिनसागर प्रमुख थे । इनने शक १६४६ की चैत्र कृष्ण ५ को आदित्यव्रत कथा लिखी, शक १६४९ मै कारंजा में जिनकथा की रचना की, शक १६५२ की आश्विन शुक्ल १२ को पद्मावती कथा तथा शक १६६० में पुष्पांजलि कथा पूरी की [ ले. १६३-६६ ] । लवणांकुश कथा, अनन्त कथा और सुगन्धदशमी कथा ये इनकी अन्य कथाएं शिरड ग्राम में लिखी गई थीं [ले. १६०-६९ ] । वहीं शक १६६६ की वैशाख शुद्ध द्वादशी को आप ने जीवंधरपुराण लिखा [ ले. १७० ] | नन्दीश्वर उद्यापन, आदिनाथ स्तोत्र, शान्तिनाथस्तोत्र, पार्श्वनाथस्तोत्र, पद्मावतीस्तोत्र, क्षेत्रपालस्तोत्र, ज्येष्ठ जिनवर पूजा, और शान्तिनाथ आरती ये आप की अन्य रचनाएं हैं [ ले. १७११७८ ] ।
देवेंद्रकीर्ति के पट्ट पर धर्मचन्द्र भट्टारक हुए। आप ने संवत् १७९३ में एक पद्मावती मूर्ति स्थापित की तथा शक १६९२ की वैशाख कृष्ण १२ को एक पार्श्वनाथ मूर्ति स्थापित की ( ले. १७९-८० ) । संवत् १८३१ की श्रावण शुक्ल १३ को एक ऋषिमंडल यंत्र भी आप ने स्थापित किया [ ले. १८३ ] | आप के शिष्य वृषभ ने शांतमती और इंदुमती के आग्रह पर संवत् १८२८ में रवित्रत कथा लिखी तथा संवत् १८३० की ज्येष्ठ कृष्ण ५ को निर्दोषसप्तमीत्रत का उद्यापन लिखा (ले. १८१-८२ ) । इन ने शक १६९६ की भाद्रपद शुक्ल ५ को नववाडी नामक स्फुट कविता रची तथा संवत् १८३३ में कर्णखेट में पुनः रविवार व्रत कथा की रचना की [ ले. १८४-८५ ] ।
२८ पहली दो कथाओं में रचनाशक दिया है किन्तु पुत्र शब्द से कौनसा अंक लिया जाय यह स्पष्ट नहीं है ।
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