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________________ लोक - १२,१३,१४ - - - निर्माण कागगृह के दरवाजे के पास सभा खचाखच भरी हुई है। सभी को कौतूहल है, सभी को आश्चर्य । परन्तु, विश्वास या महाकवि को। उनका मानना था कि परम की कृपा, भक्त की अस्मिता का सौन्दर्य है। अम्मिता का मौन्दर्य किसी व्यक्ति का सौन्दर्य नहीं है। अस्मिता की आवाज किसी व्यक्ति की आवाज नहीं हैं। अस्मिता का ज्ञान किसी व्यक्ति का शान नहीं है। अम्मिता का आनन्द किमी व्यक्ति का आनन्द नहीं है। इस आनन्द की चरम मीमा भति।। दखाता परमात्मा का मिलन-म्यान है, मानतुगाचार्य की आत्मा परमात्मा के मिलन का दिन,आचार्यश्री का हृदय परमाला के विराजने का सिहासन है, निर्मित होता हुआ स्तोत्र पग्माल-मिलन का मंत्र। दटती देशियों में पलकती विजय आचार्यश्री के सत्त्व की विजय है, आचार्य के परमात्मा की विजय और आचार्य के परमात्मा के शामन एव धर्म की विजय है। परमात्मा के शुभ दानों में आचार्यश्री का ध्यान परमात्मा की पवित्रमयी देहदृष्टि पर गई। पुजीत पवा एण्यमय परमाणुओ पर गई जो पुद्गलात्मक तो ये फिर भी परम औदारिक र र अत्यन्न पवित्र थे। इस देह का ऐसा अदभुत यह निर्माण था कि जो अदितीय, अपार और अतुलनीय था। इसी देह में अनन्त शान, अनन्त दर्शन, अनन मान्य स्वरूप वीतराा परम आला दिराज रही थी। इस देह-निर्माण का ऐमा क्या रहस्य जो हम ओक, जीपारिकारीरधारियो को प्राप्त न हो सका? आपके घेता-माम में भी पदि या प्रश्न उभरता हो तो चलिये अट आचार्यश्री में साम्य पारपाटन फरादे चै शान्तरागमचिभि परमाणुभिस्न्व, निर्मापितत्रिभुवनेक - ललामभून तावन्त एव खलु तेऽप्पणव पृथिव्या, पत्ते समानमपर नहि रूपमस्ति ॥१२॥ त्रिभुवन लाल - हैनन ल के जनुन ला ' ६ गारपिपि पामि-: पाईन्
SR No.010615
Book TitleBhaktamar Stotra Ek Divya Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1992
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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