________________
४६ भक्तामर स्तोत्र एक दिव्य दृष्टि मोती की शोभा को प्राप्त होती है वैसे मेरे मुख से निकले ये शब्द स्तवन की शोभा को प्राप्त होते हैं।
ननु याने निश्चय से यह तेरे "चेतो हरिष्यति" चित्त का हरण करेगा ही। क्योकि तुझे ही सुनाने को, मनाने को यह स्तवन कर रहा हूँ।
जहाँ भाव होता है वहाँ प्रभाव होता है। ऐसी विशिष्ट उपलब्धि से वंचित सामान्य व्यक्ति इस परिस्थिति से अनभिज्ञ होने से इसका अनुभव नही कर पाता है और इसी भ्रान्तिपूर्ण मिथ्यादृष्टि से वह इसे ही गलत भी मान सकता है। ऐसी एक सफल मानसदशा की विलक्षण अभिव्यजना हम भाव-प्रभाव नामक प्रवचन मे गाथा ९ के द्वारा प्राप्त करेंगे।