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१२ भक्तामर स्तोत्र एक दिव्य दृष्टि
अव हम एक-एक शब्द का खोलकर उसे समझने का प्रयास करे१ भक्त-आत्मिक सम्यक् परिणति भक्ति की जानी है। रोमी भक्ति जिमके हृदय
मे हो वह भक्त है। इसीलिए कहते हैं
"भतिभर निटभरेण हिअय" २ अमर-इस शब्द के यहाँ चार अर्थ होते हैं
१ जिसको मृत्यु न हो वे अर्थात् परमात्मा। इनका मम्यक् स्मरण,
आलवन ग्रहण, प्रणमन आर उग पद की उपलब्धि। २ जो इनके प्रति श्रद्धाभावो को प्रकट कर स्वय में वीतरागभावो को
उभारता है वह स्वय अगर ऐसे परम पद को प्राप्त होता है। ३ अमर-इमे यदि अवस्था का द्योतक माने तो यह निर्वाण या मोक्ष
तत्व का प्रतीक है।
४ सामान्य मे यह देव पद का द्योतक है। ३ प्रणतमोलि-मोलि-मुकुट-जो मस्तक पर धारण किया जाता है। प्रणत याने
प्रकर्प भाव से झुका हुआ। साधक का मस्तक झुका हुआ है। ४ मणिप्रभा-यह हमारे नाभि मे स्थित मणिपूर चक्र का प्रतीक है। जिसे साधना में
वडा महत्वपूर्ण माना गया है। ५ पादयुग-पाद याने चरण ओर युग याने जुडा हुआ।
इस प्रकार इसमे मस्तक से लेकर चरण तक की एक गुप्त महासाधना का सकेत है। जिसके माध्यम से साधक अपनी ऊर्जा को प्रकट कर अनन्त कर्मों का क्षय कर सकता है।
और उनके (कर्मों के) प्रभाव से प्रकट लोहे की वेडियो के बन्धन भी इस साधना से सहज टूट सकते हैं।
हमारी चेतना पैर से लेकर मस्तिष्क तक सवेदनशील है। इसी कारण डॉक्टर सवेदना का परीक्षण पैर मे पीन (pim) लगाकर करते हैं।
हम नमस्कार करेंगे तो कहाँ करेगे ? माथे पर क्या? नही | चरणो मे चरणो मे क्यो करते हैं कभी आपने सोचा है क्या? और झुकाया क्या जाता है ? मस्तक हमारे हाथ
और पैरो मे से विद्युतकण (Electron) पैदा होते हैं। साधना के समय हम में से ऊर्जा पैदा
होती है लेकिन दोनो पैरो को जमीन से सीधा स्पर्श कर रखते हैं तो सारी ऊर्जा धरती में -- पा जाती है। बिजली जब गिरती है तो जमीन मे समा जाती है। इसी प्रकार यह ऊर्जा भी
· में समा जाती है। कायोत्सर्ग मुद्रा ऊर्जा को शरीर मे समा देने की विशेष मुद्रा है
ए इसका महत्व रहा है। पद्मासन मे बैठकर वाहिना हाथ नीचे दाहिना हाथ ऊपर रखकर गोलाई मे हथेलियो को जमाने से ऊर्जा अगुलियो और अगूठो के माध्यम से Flow होती है। मस्तक इस ऊर्जा को अपने मे Absorb करता है, सम्पादित करता है।