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भक्तामर स्तोत्र
एक दिव्य दृष्टि
श्लोक १० से ३७ तक मे परमात्मा का प्रत्यक्षीकरण अर्थात् परमात्मा सामने ही हो, ऐसा परमभाव प्रस्तुत है।
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श्लोक ३८ से ४७ तक मे विविध भय, जो जीव की आन्तरिक कषायो के प्रतीक हैं, उनके निवारण के उपाय प्रस्तुत किये हैं।
श्लोक ४८ मे स्तोत्र करने का फलितार्थ अतिम ध्येय (मोक्ष) लक्ष्मी की प्राप्ति बताया
है।
आज हम स्तोत्र से परिचित हुए हैं। स्तोत्र का ध्येय परमात्मा का परिचय देना और हमारा अपना परिचय प्रकट करना है । अत हम अव परमात्मा का परिचय करने का प्रयत्न करेंगे।