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________________ ४ भक्तामर स्तोत्र एक दिव्य दृष्टि लोकमुख से प्रसिद्ध कथा ऐसी है कि एक बार मानतुगाचार्य धारा-नगरी मे पधारे। उस समय मन्त्री आदि उनके दर्शन को गये थे। राजसभा मे उनकी अनुपस्थिति ने राजा को उत्तेजित कर दिया। उन्होने आचार्य को राजसभा मे बुलाने का प्रयल किया परन्तु समाधिस्थ आचार्यश्री ने इस प्रस्ताव की उपेक्षा की। सेवक समाधिस्थ आचार्यश्री को उसी अवस्था मे उठाकर राजसभा मे लाते हैं। मौन खोलने का आग्रह करते हैं। आचार्य की निश्चलता को राजा ने अपना अपमान मानकर उन्हें लोहे की कील वध शृखलाओ मे जकड़कर कैदखाने मे कैद कर दिया। देह के अनित्य और आत्मा के नित्य स्वरूप तान मे स्थित आचार्य पूरा दिन-रात १२ भावनाओ के चिन्तन मे व्यतीत करते हैं। आचार्य परमात्मभाव मे लगे बढ़ रहे थे और राजा बेचैनी मे आगे बढ़ रहा था। प्रभात का वह प्रथम प्रहर था। जब आचार्य श्री की चितन धारा मे उत्कृष्ट श्रद्धा भाव युक्त भक्तिभाव उत्पन्न हुआ। विवाद किसी भी विषय का रहा हो परन्तु सभी सप्रदायो का सर्वमान्य प्रतिपादन यही है कि वह समय द्वन्द्व का था और आचार्यश्री की निश्चलता को तोडने का वह प्रयास था। परन्तु मुनि तो मुनि ही थे। उनके मन मे यह ससार तो परमाणुओ की रूपान्तर कथा मात्र हैं, जिनको देखकर परमार्थ की याद आ जाय वही तो मुनि है। स्नेह और सौजन्य की जीवन्त प्रतिमा है। उनके मन मे न कोई भेद है, न कोई खेद है। पृथ्वी पर रहते हुए परम मे विचरते हैं। अवनि मे रहते हुए अविनाशी मे एकतार रहते हैं। यद्यपि महापुरुषो के जीवन का मूल्याकन उनके देहसामर्थ्य, द्रव्य भण्डार या राज्यसत्ता के बहिरग साधनो द्वारा कभी नही आका जाता। उनकी पहचान तो उनके विपुल आत्म-समृद्धि के अतरग साधनो से ही होती है। ___ऐसे श्री मानतुगाचार्य ने राजा द्वारा डलवाई लोहे की बेडियो के बन्धन मे बन्धन-भेद की कला सिद्ध की और परमात्मा मे एकरूप हुए। इस एकाग्रता मे अभेद से नाद प्रकट हुआ, नाद से अश्राव्यध्वनि उद्भूत हुई और उन विशिष्ट ध्वनि तरगो से उत्पन्न स्तोत्र से लोहे की बेड़ियो के बन्धन टूटे। एक-एक श्लोक का सर्जन होता गया और एक-एक बड़ी टूटती गई। __ हमे विचार आ सकते हैं कि आचार्य के श्लोक सर्जन से लोहे की बेडियाँ कैसे टूट सकती हैं ? क्या शब्दो से लोहे की बेडियॉ कभी टूट सकती हैं ? इस प्रश्न का सनसनाता उत्तर आज का विज्ञान देता है कि हमारी आवाज १८ हजार सायकल पर जाती है तब अश्राव्य हो जाती है। जैसे अश्राव्य ध्वनि को उत्पन्न करान वाले (Ultrasonicdnil) से सैकड के हजारवे भाग में अतिघन माना जाने वाला पदार्थ (हीरा) टूट जाता है। यदि अश्राव्यध्वनि से हीरा ट सकता है तो अश्राव्य शब्द शक्ति स लोहे की बेडी क्यों नही टूट सकती ? (Ultra Sound technology) का यह सिद्धान्त विज्ञान के क्षेत्र मे आशीर्वाद रूप बन गया है।
SR No.010615
Book TitleBhaktamar Stotra Ek Divya Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1992
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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