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परिशिष्ट १५१ प्रश्न १-'भक्तामर स्तोत्र और आधुनिक विज्ञान' इस विषय के आपके प्रवचन से ध्वनि द्वारा बेडियाँ टूटने के वैज्ञानिक सिद्धान्त को तो सुना, परन्तु यह ध्वनि विज्ञान हमारी ऊर्जा को कैसे तरगित कर सकता है? यह समझना चाहता हूँ।
उत्तर-भक्तामर स्तोत्र २६८८ अक्षरो का स्तोत्र है। ये सारे अक्षर यौगिक अक्षर हैं। यौगिक अक्षर अणु और परमाणु से भी बहुत अधिक सूक्ष्म होते हैं। अणु और परमाणु से भी बढ़कर कार्य यौगिक अक्षरो से बनने के प्रमाणो से हमारा वैभव भरा अतीत साक्षी है। ऐसे तो शब्द जड द्रव्य है, परन्तु उन जड़ अक्षरो को जब महायोगी अपनी प्राणचेतना के द्वारा ध्वनि प्रकम्पनो को अपनी विशिष्ट विद्युतीय शक्ति तरगो से आपूरित करते हैं, तव वे यौगिक अक्षर मत्र या स्तोत्र बन जाते हैं। ऐसे मत्र और स्तोत्र सृष्टि के रहस्य, चमत्कार या अन्य ऐसे ही कई रूपो मे समायोजित हो जाते हैं।
सम्पूर्ण सृष्टि ध्वनि प्रकम्पनों से भरी हुई है। इन कम्पनो को Frequency कहते हैं। विद्युत चुम्बकीय तरंग Electro-Magnetic Radiation युक्त कम्पनो से ही सृष्टि का वातावरण समायोजित रहता है। ये तरगे दो प्रकार की होती हैं
१ अनुदैर्ध्य और २ अनुप्रस्थ। इनमे केवल अनुप्रस्थ तरगो का ध्रुवण हो सकता है।
ध्वनि के कम्पनो द्वारा विद्युत धारा मे उसी आवृत्ति तथा रूप के कपन उत्पन्न करने के यत्र को Microphone कहते हैं। इन विद्युत् कपनो की प्रबलता के उपकरण को प्रवर्धक कहते हैं। इस प्रवर्धित धारा के द्वारा पुन ध्वनि उत्पादन करने के यत्र को Telephone कहते हैं। इन यत्रो के द्वारा क्षीण ध्वनि भी हजारो Male तक सनाई देती है। ध्वनि के इस सचरण मे समय बहुत ही कम लगता है, क्योंकि यह ध्वनि के रूप मे गमन नही करती बल्कि विद्युतधारा के रूप मे और रेडियो तरगो के रूप ने प्रकाश के वेग से स्थानातरित होती हैं। ऐसी ही पुनरुत्पादित ध्वनि की प्रबलता वातं यत्र को Loud speaker कहते हैं।
ये ध्वनि दो तरह की होती है१ अक्षरात्मक ध्वनि और २ अनक्षरात्मक ध्वनि दूसरी तरह से-श्राव्यध्वनि और अश्राव्य ध्वनि।
जिन ध्वनि तरगो को हमारे कान पकड़ सकते हैं उसे हम श्राव्य ध्वनि कहते हैं, और जिस ध्वनि की कम्पन युक्त तरगो को हमारे कान नही पकड़ सकते हैं, वह अश्राव्यध्वनि है। सामान्यत हमारे कान प्रति सैकन्ड मे १६ से लेकर ३२,७६८ कपन युक्त तरगो को पकड़ सकते हैं, इससे अधिक कम्पन (Frequency) और लम्बी तरगे अश्राव्य (Ultrasonic या Supersonic) हो जाती हैं।
सामान्यत हम इसे इस प्रकार समझ सकते हैं, जैसे- मान लीजिये कि हम कमरे में बैठे हैं, जहाँ रेडियो, टेलीविजन या माइक की कोई व्यवस्था नही है