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अर्थ
वैभव १२३ - पदार्थों (द्रव्य गुण पर्याय और उनके भाव) को
बताने मे सक्षम तथा सर्वभाषा
- सभी भाषाओ के स्वभाव
- गुण को परिणाम
- परिणत होने के
गुणो से प्रयोज्य
युक्त
- आपकी दिव्यध्वनि
- अलौकिक वाणी भवति
- होती है। अनादिकालीन वासना, मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय, अशुभयोग, अनध्यवसाय, सशयादि का सर्वथा नाश करने में समर्थ परमात्मा की दिव्यवाणी भव्यजीवो के भवसमाहार का सवल साधन है। मालकोष राग मे दी जानेवाली इस देशना मे सर्व जीवसृष्टि की रक्षा सन्दर्भित रहती है। इसीलिये प्रश्नव्याकरण सूत्र में कहा है___ सव्वजगजीव-रक्खणदयट्ठयाए पावयण भगवया सुकहिय अत्तहिय पेच्चाविय आगमेसिभई सुद्ध णेयाउय अकुडिल अणुतरं सव्वदुक्खपावाणविउसमण
यह प्रवचन भगवान ने जगत् के समस्त जीवो की रक्षा-दया के लिए समीचीन रूप मे कहा है। यह प्रवचन आत्मा के लिए हितकर है, परलोक-आगामी जन्मो मे शुद्ध फल के रूप मे परिणत होने से भव्य है तथा भविष्यत् काल मे भी कल्याणकर है-निर्दोष है और दोषों से मुक्त रखनेवाला है, न्याययुक्त है, अकुटिल है, अनुत्तर-सर्वोत्तम है तथा समस्त दुःखो और पापों को उपशान्त करनेवाला है।
देव-देविया, मनुष्य-स्त्री-पुरुष या अन्य जो भी जीव परमात्मा की देशना मे आते हैं उन सर्व की अपनी-अपनी भाषा और भावो मे यह तद्रूप परिणत होती जाती है। यह देशना अर्धमागधी मे होने पर भी १८ लौकिक भाषा और ७00 लघु-भाषाओ मे आसानी से सयोजित हो जाती है।
पहले तो लोग इस तथ्य में आशकित होते थे परतु आज भी यू एन ओ मे कोई भाषण होता है तो वह अपने आप पाच भाषाओ मे अनुवादित हो जाता है।
१ रशियन २ अग्रेजी ३ जर्मन ४ चाइनिश ५ फ्रेच __ देशना की सर्वोपरि विशेषता यही है कि यह सदा समस्त तत्त्वो और तत्त्वो के अर्थों से गर्भित रहती हैं। __ दिव्यध्वनि मे स्पंदित भक्त के मानस चक्षओ मे दैवीय सुवर्णकमल का अवतरण होता