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७८ भक्तामर स्तोत्र एक दिव्य दृष्टि
आगम मे आत्म-प्रदेशो के ऐजन (कपन) के बारे मे कहा है। बाह्य वातावरण का मानव के मन पर प्रभाव होता है तब द्रव्यमन भावमन को प्रभावित करता है। भावमन आत्म-प्रदेशो को कपित करता है और फिर कर्म का बन्धन होता है। इस प्रकार कषाय और योग के अनुबध से ही कर्म बन्धन होता है। वीतरागी परमात्मा पर बाह्य वातावरण का प्रभाव ही नही होता और न ही उनके आत्मप्रदेशो मे कपन होता है, तो फिर विकारी भावो का उत्पन्न होना और विचलित होना सभव ही कैसे हो सकता है ?
अब दूसरा प्रश्न है, निर्विकारी परमात्मा के लिये तो इस बात को स्वीकार कर लेवे, परतु इससे हमे क्या? हम तो सतत विकारो से प्रभावित होते रहते हैं। आज विकारी वातावरण बढ़ता जा रहा है। प्रत्येक वातावरण एक बम्ब-विस्फोट की भांति हमे भीतर से छिन्न-भिन्न कर रहा है। प्रति समय हम मे एक नयी सृष्टि की सरचना हो रही है। हमे ऐसे वीतराग का पूर्ण शुभत्व जानकर भी क्या लाभ ? यह प्रश्न ससार के समस्त रागियो का प्रश्न है और इसका उत्तर हमे भक्तामर स्तोत्र से पाना है। साथ मे मनोविज्ञान के सिद्धान्तो का भी निरीक्षण करना होगा, क्योंकि प्रत्येक विकारी भावो के कारण हमारी मानसिक अभिव्यक्तियों निहित हैं। ___सामान्यत हमारे भीतर दो प्रणालिया काम कर रही हैं। एक है रासायनिक प्रणाली
और दूसरी है विद्युत्-नियत्रण प्रणाली। ये दोनो प्रणालिया आदमी के आचार और व्यवहार का नियन्त्रण करती हैं। यदि रासायनिक प्रणाली को समझ लिया जाए तो जीवन का क्रम बदल सकता है। रासायनिक प्रणाली मे अन्त स्रावी ग्रन्थिया काम करती हैं। उनके साव रक्त मे मिलते हैं और आदमी के व्यवहार और आचरण को प्रभावित करते हैं। इन नावो मे ध्यान की विद्युत् नियत्रण प्रणाली से परिवर्तन किया जा सकता है। उसके काम-क्रोधादि विकारो की उत्पत्ति के सूक्ष्म कारणो को हम नही जान सकते हैं, परन्तु इस स्थूल शरीर मे इन विकारो की उत्पत्ति का कारण तो खोज सकते हैं। यह निश्चित है कि किसी अन्त नावी ग्रन्थि का ऐसा नाव रक्तगत हुआ है जिससे विकार उभरते हैं। परमात्मा के ध्यान के द्वारा अन्त स्रावी ग्रन्थियो के नाव बदले जा सकते हैं और जब वे बदलते हैं तब आवेग समाप्त हो जाते हैं। रसायन बदलते हैं तो काम-क्रोधादि विकारो वाली आदते भक्ति, सवेग आदि मे बदल जाती हैं। अन्यथा आदत का बदलना असभव है। __इसी प्रकार विद्युत्-नियत्रण का परिवर्तन होता है। हमारे स्नायु सस्थान मे पर्याप्तमात्रा मे विद्युत् है। उसी विद्युत् के कारण हमारी सक्रियता बनी रहती है। उन विद्युत् के प्रकपनो को बदलने पर आदते बदल जाती हैं।
परमात्मा के ध्यान का सबसे बड़ा प्रभाव है कि इससे हमारी विद्युत् प्रणाली मे बहुत बडा परिवर्तन आ सकता है। उनके शान्त परमाणुओ का ध्यान करने से हमारे विद्युत् तन्त्र मे उभरती अशुद्ध तरगे शुद्धता मे तरगित हो जाती हैं।