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बाबू पूरणचन्द जी नाहर के पत्र
लिखने की आवश्यकता नहीं होती। आपने स्वयं दुकान में जाकर पुस्तकें चुनी, दूकानदार ने बिल बनाया मैंने तो फक्त संस्था के लिये कुछ कमीशन देने को कहा और आपकी आज्ञानुसार बिल के रुपये चुकते दिये । वह विल बंगला में थे इस कारण हमारे केशियर ने उसे अंग्रेजी मे लिख दिया था। वे दुकानदारो के बिल भी आपके साथ ही दे दिये गये थे। पुस्तके मेरे यहाँ किसी प्रकार गड़बड़ नही हो सकती। आपकी ली हुई पुस्तकें अलग ही रखी हुई थी। आपही कुछ पुस्तकें बँधवाकर भेजने का हुक्म दे गये थे। बाकी पुस्तकें साथ साथ ही पेक करवा कर रवाने कर दी गई थी "सेठ वनसेर हिस्ट्री" जिसकी कीमत ११) लिखी है वह पुस्तक नही मिलती है। बाकी मुझे जहाँ तक ज्ञात होता है नगेन्द्रनाथ बसु की जो "बगेर जातीय इतिहास" पुस्तकों के सेट जो आपने खरीदे थे शायद उस सेट की ही कीमत रु० ११) होगी। वह पुस्तकें तो वहां पर अवश्य मिल गई होगी, लेकिन विल मे उनके नाम या मूल्य नही तजवीज किये गये होगे और न मुझे ऐसी पुस्तके जो फाजिल मिली होगी उनके नाम लिख भेजें। सम्भव तो मुझे यही होता है कि मेरे केशियर ने Set सेट के बदले Seth लिख दिया होगा। नहीं तो सेठ वनसेर हिस्ट्री ऐसी नाम की कोई पुस्तक हमे मालूम नही है । और हम यहां से कुछ लिख नही सकेंगे।
'तत्र कल्पतरु' के बारे मे fac 2 नही मिलती, लिखा मैं क्या करूं। जहां से ली गई है उसके बिल मे देखिये कि fac 2 लिखा है या नही । अगर कुछ नही लिखा हो तो वहाँ से उनको पत्र लिखिए कि कौन कौन fac की कीमत ली है। मेरे यहाँ आपकी ली हुई कोई पुस्तकें है नही। विल इसके साथ भेजते है पहुँच लिखिएगा। ___मेरी गवाही एक महिना तक चली। बहुत बातें जिरह मे पूछी गई । जहा तक मुझे स्मरण और ज्ञान था जवाब देते रहे। वकील लोग कहते हैं कि अच्छी हुई है आगे जो भावी भाव है वह होगा ।
आगे राजगिर की प्रशस्ती समय निकाल कर देख लीजियेगा और