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बाबू श्री पूरणचन्दजी नाहर के पत्रं
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२५-१-२६ परम पूज्यवर श्रीमान आचार्य महाराज श्री जिनविजय जी की पवित्र सेवा मे पूरणचन्द नाहर की सविनय वन्दना अवधारिएगा । यहां श्री देवगरु धर्म के प्रसाद से कुशल है। आपके शरीर सम्बन्धी सुख साता हमेशा चाहते हैं। अपरंच कार्ड एक कल दिन भेजा है। आज दि ११ राजगिर केस में गवाही के बाद एक दिन छुट्टी ली है फिर शुरू होगा और उम्मेद है हमको और भी आठ दस रोज हेरान होना पड़ेगा । अस्तु आगे जो सब किताबें बंधवाकर भेजी हैं वे पसन्द आई होगी लिखिएगा। मैंने अच्छे बाइडर से बंधवाई हैं कि जिसमें जल्दी पुट्ट नष्ट न हो जाये । और इसके साथ आज तक के कुल हिसाब भेजते हैं आप देख लीजिएगा। जो कुछ भूल रह गई हो सो सूचित कीजिएगा। पहले की लिस्ट भी आज्ञानुसार भेजते हैं। आशा है पुस्तकें सब लिस्ट मुजव मिली होगी। पूने से फर्मे पहुंचने पर आपके पास आज्ञानुसार भेज देवेंगे और कर्मचन्द प्रवन्ध की सटीक प्रति जैसलमेर से मगाई है । शीघ्र ही लौटानी होगी। इस कारण निवेदन है कि उसकी मूल की प्रति एक दो जितनी आपके पास हो मुझे कृपया रजिस्ट्री डाक से भेजिएगा। मै यहाँ एक टेक्स्ट की रीडिंग मिलाकर बहुत ही शीघ्र आपको वापिस भेज दूंगा। आगे मथुरा लेखो के साथ मैंने जो जो पुस्तकें रखी थी उनमे एक एशियाटिक सोसायटी का प्लेट सहित मथुरा इन्स्क्रीप्सन्स के प्रवन्ध का पार्ट था। यदि वहाँ मिल जाय तो वह भी मुझे भेजने की कृपा कीजियेगा। कष्ट दिया सो क्षमा कीजिएगा। मेरे योग्य सेवा हो सो लिखिएगा। पत्र शीध्र दीजियेगा। ज्यादा शुभम् संवत् १९८२ माह सुदि १२ ता. २५-१-२६
पूरणचन्द की वंदना आगे अवध मेनस्क्रीप्ट के केटेलोगो को नही बंधाया गया है और जरमन कोर्स टिवेटन मेन्युअल आपकी सेवा में भेजी गई है। कुल