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मेरे दिवगत मित्रों के कुछ पत्र
पुरुपो की ही लेखनी से इसकी समुचित समालोचना होना कर्तव्य है । अधिक क्या लिखूं, किसमें प्रकाशित करें सूचना देकर कृतार्थ कीजियेगा । मथुरा की Vol. के लिये मुझे विशेष चिन्ता सदा रहती है । अब आप अवश्य कृपा करें नही तो मैं सब कार्य छोड़कर इसको प्रकाशित करने मे तत्पर होने की इच्छा रखता हूँ । अब आप दयाद्र होकर मेरे निवेदन को स्वीकार कर पत्रोत्तर देकर चित्त को शान्ति देवें ज्यादा क्या लिखू 1
द : सेवक पुरणचन्द की वन्दना पहुँचे ।
( १० )
Calcutta
25-6-1925
परम पूजनीय विद्वद्वर्थं श्रीमान मुनि महाराज श्री जिनविजयजी की पवित्र सेवा मे लिखी पूरण चन्द्र नाहर की सविनय वन्दना अवधारिएगा | यहाँ श्री जिन धर्म के प्रसाद से कुगल है महाराज की सुख साता सदा चाहते हैं । अपरच मेरे कोई पूर्व सचित अशुभ कर्म के योग से महाराज की सेवा मे कई पत्र ताकीद भेजने पर भी अद्यावधि कोई प्रत्युत्तर से वंचित है । मैंने यहा मेरे मकान पर ही प्रेस खोलकर जैन लेख संग्रह का दूसरा भाग छपवाना आरम्भ कर दिया है । और ३५, ३६ फार्म छप भी गया है । उसी सग्रह मे मथुरा के लेखो को भी प्रकाशित करने की प्रबल इच्छा है । अब मेरे पर किंचित मात्र भी दया विचार कर आपके पास जो मैं हिन्दी अनुवाद सहित मथुरा के लेख रख आया था वे अति शीघ्र भेज दीजियेगा । विलम्ब से आपको कुछ लाभ नही होगा, परन्तु मेरा परिश्रम प्रकाशित न होने से व्यर्थ ही जायगा | आपको वारम्बार इस विषय में लिख कर कष्ट दे रहे है । इसी का हमें पूरा ख्याल है, आज में यह पत्र पूरी आशा बाँधकर लिखता हूँ और वारम्बार यही विनती है कि मेरे मथुरा के लेख अति