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मेरे दिवंगत मित्रो के कुछ पत्र
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और पावापुरी जा रहा था, तब एक पत्र मैंने श्री देवेन्द्र प्रसाद को आरा लिख दिया था जिसके उत्तर मे उनका यह पत्र है ।
Prem Mandir Arrah आरा २-२-१६२१
श्री परम पूज्य महाराज जी के चरण कमलो मे वारम्वार वन्दना
आपके लाने का आनन्द समाचार जानकर चित्त प्रफुल्लित हो गया आपके दर्शनों की इच्छा बहुत दिनो से लगी थी । श्रव पूर्ण होगी । मैं तो बहुत ही लज्जित था कि मुझसे आपकी आज्ञाओ का पालन कुछ भी नही हो सका । परन्तु आपसे मिलकर मैं सब वृत्तान्त सुनाऊगा । मैं अभी अभी कलकत्ते से १५ दिवस ठहर कर वापस आया हूँ । यदि मुझको आपके वहाँ जाने का समाचार जरा पहले मिलता तो अवश्य मैं वहाँ ही ठहर जाता । मुझको ५-६ दिवस के लिये प्रयाग जरूरी जाना है । मेरा दफ्तरी जो तत्वार्थ सूत्र आदि का जिल्द बनाता था उसका स्वर्गवास हो गया है । मुझको इसलिये प्रयाग शीघ्र जाकर पुस्तको को सभालना है - यही मजबूरी है वरना मैं आपके पास सीधा आ जाता, क्षमा करें ।
कृपा कर आप कलकत्ते से एक पत्र लिख भेजें कि आपका कलकत्ते रहना कब तक होगा । मैं यदि अनुकूल हुआ तो कलकत्ते ही मिलूगा वरन् - पावापुरी आदि तो आपका अवश्य आना होगा ही - आरा अवश्य पधार कर दर्शन दें । बडी कृपा होगी ।
आपका चरण सेवक कुमार देवेन्द्र प्रसाद
(हरि सत्य भट्टाचार्य को लिख दिया है कि आपसे अवश्य मिलेयोग्य सेवा लिखें । डाक्टर भांडारकर के लड़के वहाँ ही है उनसे अवश्य मिले - महात्मा गाँधीजी भी तब तक वहाँ है | )