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श्री काशीप्रसाद जायसवाल के पत्र
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एक बात के लिए आपको यह सेवक कष्ट देना चाहता है। अर्कस नाम के देवता क्या जैन साहित्य मे आये है ? तो उनकी गिनती क्या है तथा उनका स्वभाव कैसा है ?
आपका
काशीप्रसाद जायसवाल नोट-यह पत्र जब मेरे पास आया तव सुप्रसिद्ध जैन विद्वान् श्री नाथूरामजी प्रेमी मेरे साथ थे। उन्होने पत्र के हाँसिये में नोट लिखा था कि उत्तर पुराण शक संवत् ८२० मे समाप्त हुआ है । (१५)
Patna
28-5-18 माननीय मुनिजी,
बहुत दिनों के बाद पत्र पाकर बहुत सुख हुमा । अलविरुनी ने गुप्त काल और शक काल का उदाहरण साथ ही दिया है। उसे फ्लीट ने गुप्त इन्स्क्रीप्सन्स में लिखा है। आप फ्लीट की भूमिका देख लीजिये । उसमें है।
मेरे मित्र राखालदास जी बनर्जी वहाँ गये हैं। भांडारकरजी के स्थानापन्न उनसे भेंट कीजिएगा । खारवेल मे बड़ी मेहनत की गई है। हिन्दी में मुझे करने का अवकाश नही है । वह विचार छोड़ दिया गया।
अधिक शुभ
का० प्र० जायसवाल चाणक्य ने कम दाम के सिक्के चलाये थे और नन्दो ने चमड़े पर कर लगाया था, यह जैन ग्रन्थो मे है ? मिलने से भेजिएगा।
जैन सोमदेव सूरि को भये कितने दिन हुए। राजनीति पर कोई ग्रन्थ जैन प्राकृत मे है ?