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________________ ११८ मेरे दिवंगत मित्रों के कुछ पत्र पार्सल से मेरे पास भिजवा देवें अथवा आप अपने नाम से वहां से उधार लेके भेज देवें । उनकी बहुत आवश्यकता होने से ही श्रापको कष्ट दिया है, सो क्षमा करें। जोधपुर और बीकानेर राज्यों के इतिहास छप रहे है जो छपते ही आपकी सेवा में भेज दिये जावेगे 1 (१७) म. म. रायबहादुर गो. ही. ओझा विनयावनत गौरीशंकर हीराचन्द ओझा अजमेर ताः ७ फरवरी १९६३८ विद्वद्वराग्रगण्य आचार्यजी महाराज श्री जिनविजय जी के चरण सरोज मे गौरी शंकर हीराचन्द ओझा की प्रणति विदित हो । अपरच आपका कृपा पत्र ताः २१-१-३८ का मिला जिसके लिये अनेक धन्यवाद परसो अर्थात् ५-२-३८ को गुर्जर ग्रथ रत्न कार्यालय के द्वारा "मिराते अहमदी" की पहली जिल्द का गुजराती अनुवाद प्राप्त हुआ यह आपकी कृपा का ही फल है | गुर्जर ग्रंथ रत्न कार्यालय से आज तीन दिन हुये परंतु उस पुस्तक के सभ्बन्ध मे कोई पत्र नही मिला, जिससे यह ज्ञात नही होता कि यह पुस्तक खरीद कर भेजी है अथवा उधार के तौर पर । यदि खरीद कर मेरे यहाँ रखने के लिये ही भेजी हो तो उसका बिल आना चाहिये था । यदि उधार भेजी हो तो वैसी सूचना श्रानी चाहिये थी | अभिप्राय यह है कि यदि वह उधार भेजी गई हो तो उसमे कोई निशान आदि न किये जावें और जो अश आवश्यक हों उसकी नकल करली जावे । पुस्तक मे दो तीन जगह हीरा लाल पारेख का नाम स्याही से लिखा है जिससे ज्ञात होता है कि यह पुस्तक पारेख जी की है । उन्होने ही गत वर्ष अपनी "मिराते सिकन्दरी" नामक पुस्तक उदारता पूर्वक मुझे भेंट की थी । कदाचित कीमत न भेजी गई हो तो उसका मूल्य मादि लिखावें ताकि वह भेज दिया जावे और आवश्यक अंश की नकल करने में समय न बिताया जावे ।
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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