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मेरे दिवंगत मित्रों के कुछ पत्र
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Ajmer. Dated 14 Jan. 1936
Mahamhopadhyaya,
Rai Bahadur Gaurishankar H. Ojha.
श्री मान आचार्य जी महाराज श्री जिनविजय जी के चरण सरोज मे गौरीशकर हीराचद ओझा का सादर प्रणाम अपरंच ।। आपने कृपा कर मेरे लिये "प्रबन्ध कोप" और "विविध तीर्थ कल्प" की पुस्तकें भेजी। जिसके लिये में आपका अत्यन्त ही अनुग्रहीत हूँ। ये दोनों पुस्तकें इतिहास प्रेमी व्यक्तियों के लिये रत्ल रूप है ।
सिंधी डालचंन्द जी, प्रत्येक इतिहासवेत्ता साहित्य सेवी एवं जैन धर्मानुरागी के लिये आदर्श पुरुप हो गये, जिनकी स्मृति उसके सुयोग्य पुत्र बहादुरसिंह जी ने चिरस्थायी स्थापित की है, जो बड़े ही महत्व का काम है।
जैन धनाढ्यों में अनेक पुरुप अन्य कार्यों में बहुत कुछ व्यय करते हैं । परन्तु प्राचीन जैन ग्रन्थो का उद्धार करने में जो पुरुप व्यय करते है, वही अपने धन का सदुपयोग करते हैं ।
प्रवन्ध कोपका एक संस्करण पहले निकला है, परन्तु आपके संस्करण जितना वह उपयोगी नहीं है। "तीर्थ कल्प" का एक अश मात्र ही कलकत्ते से प्रकाशित हुआ था, किन्तु समग्न ग्रंथ अत्यन्त शुद्धता के साथ प्रकाशित करने का श्रेय प्रापको तथा सिंधी जी महोदय को है । इस ग्रन्थ (तीर्थकल्प) के प्रकाशित होने की वडी आवश्यकता थी, जिसकी उत्तम रीति से पूर्ति अब हुई है।
आपने इस सिंघी जैन ग्रन्थ माला में चार ग्रन्थों का सम्पादन किया है, जिनमे से दुमरा "पुरातन प्रवन्ध संग्रह (प्रबन्ध चिन्ता मणि सम्बद्ध द्वितीय ग्रंथ) मेरे पास नहीं आया और उसकी मुझे वडी आवश्यकता है, इसलिये कृपा कर उसकी एक प्रति भिजवावें । मैं नवम्बर मास