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मेरे दिवंगत मित्रों के कुछ पत्र
को वम्बई जाते या लौटते समय आपसे मिल कर उस विषय में आपकी सम्मति लिखवाने का आग्रह किया था। आपने कृपा कर सम्मति लिख दी, उसके लिये मैं आपका बडा ही अनुग्रहीत हूँ मेरा इतिहास प्रकाशित होने के पूर्व ही आपने गुहिलों के सम्बन्ध मे वही निर्णय किया यह विशेष प्रानन्द की बात है। आप जैसे विद्वानो का मेरे अनुकूल विचार होना मेरे लिये सौभाग्य की बात है। यदि आप कृपा कर अनुमति प्रदान करें तो मैं आपकी इस सम्मति को नागरीप्रचारिणी पत्रिका में लेख रूप मे प्रकट कर दूं। कृपया उत्तर से सूचित कीजियेगा ।
सोलकियो के इतिहास की एक प्रति आपने मंगवाई, वह शान्तिनिकेतन के पते पर शीघ्र ही भेज दी जायगी। मालवे का परमार राज्य अस्त होने पर वहाँ की एक शाखा अजमेर जिले मे आ बसी जिसका वृत्तान्त मैंने राजपूताने के इतिहास पृष्ठ २०५, ६५६, १२७८ में दिया है। आप देख लें। गुजरात के सोलंकी राजा भीम देव (भोला भीम) के दो ताम्र पत्र मुझे मिले हैं। उनकी छा मैंने ले ली है । अब उनका सम्पादन करना है इसलिये मैं उनका अक्षरोद्धार तैयार करूंगा और एक प्रति आपकी सेवा में भेज दूंगा।
___ आपका नम्र सेवक
गोरी शंकर हीरा चन्द अोझा पुनश्च
सिद्ध राज जयसिंह का एक बहुत बिगड़ी दुर्दशा का लेख बांसवाडा राज्य से मिला है। उसकी भी एक प्रति आपकी सेवा में प्रेषित करूंगा।
(१२) म. म. रायबहादुर गो. ही. ओझा
अजमेर
ताः २७-१२-१९३४ परम् श्रेद्धेय श्रीमान् आचार्य जी महाराज श्री जिन- विजय जा की सेवा में सेवक गौरीशंकर हीराचन्द ओझा का दण्डवत प्रणाम मालूम होवे । अपरंच ।। इन दिनो आपका कोई कृपा पत्र नही मिला सो