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मेरे दिवंगत मित्रों के कुछ पत्र
अजमेर १६-१०-१९२६
श्रीमान् विद्वद्वराग्रगण्य यतिवर्य आचार्य जी महाराज श्री १०८ श्री जिनविजय जी महाराज के चरण सरोज में गौरीशंकर हीराचन्द अोझा का सविनय प्रणाम । अपरच । आपका कृपा पत्र मिति आश्विन शुक्ला ५मी का मिला, जिसके लिये अनेक धन्यवाद। इन दिनो मेरा स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता और इसी कारण बाहर भी रहना पड़ा है। कल मैं बीकानेर से यहाँ आया तो आपका कृपा पत्र मिला। अभिधानपदीपिका की एक प्रति जो आपने कृपा पूर्वक प्रदान की, यह भी कल मिली। उसके लिये शतश. धन्यवाद । पुस्तक अपूर्व है और बडी ही योजना से उसका सम्पादन हुआ है । अन्त की अनुक्रमणिका भी बहुत विस्तृत है । यदि उसके साथ हिन्दी या गुजराती अर्थ दिया जाता तो उत्तम सोने और सुगन्धी का काम हो जाता।
चित्तौड़ के जैन कीर्ति स्तम्भ का ब्लाक अप्राप्य होने से या तो उसे प्रकाशित न करूंगा या उसका नया ब्लाक बनवाऊँगा।
आपकी भेजी हुई हस्तलिखित पुस्तक केवल मेरे आलस्य और अस्वस्थता के कारण इतने दिन यहां पड़ी रही सो एक दो दिन में निकाल कर रजिस्ट्री द्वारा आपकी सेवा मे भेज दूंगा। उक्त पुस्तक में राठौडो का जो वृत्तान्त है वह बहुधा निरुपयोगी सा है। वास्तविक इतिहास के साथ उसका बहुत कम सम्बन्ध है और मेरी राय मे उसको प्रकाशित करना निरर्थक है । . गुजरात के चावडा और सोलंकियो के इतिहास की जो सामग्री आप एकत्र कर रहे है वह वास्तव मे अपूर्व हा होगी। इन राजाओं के शिलालेख और ताम्रपत्र जो छप चुके है वे तो आपकी दृष्टि से बाहर न होगे । बिना छपे शिलालेखादि बहुत थोड़े ही है।