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________________ पं. श्री गौरीशंकर, हीराचन्दजी प्रोझा के पत्र १०१ हूँ। मूलराज से लगा कर कर्णदेव तक का इतिहास उसमे प्रकाशित हो चुका है और सिद्धराज जयसिंह का वृतान्त लिख रहा हूँ, जो बड़ा विस्तृत होने के कारण कुछ समय बाद समाप्त होगा। ___ आपने बड़ा अनुग्रह कर 'जैन साहित्य संशोधक' के प्रथम वर्ष के बाकी के तीन अंक भेजे, वे मिले । कल ही मैंने उनको तोड़कर क्रमवार अंग्रेजी, हिन्दी और गुजराती लेखो को जमा कर प्रथम वर्ष की जिल्द बाधने को दे दी । आपका साहित्य संशोधक अपूर्व रत्न है। इसके आगे के कितने अंक छपे, वह कृपया सूचित कीजियेगा। विनयावनत गौरीशकर हीराचंद ओझा अजमेर तारीख ३०-६-२४ विद्वद्वराग्रगण्य आचार्यजी महाराज श्री मुनि जिनविजयजी महाराज के चरण सरोज में नम्र सेवक गोरीशंकर हीराचन्द ओझा के सादर सविनय दंडवत प्रणाम । अपरंच । आपका कृपा पत्र ता: ८-६-२४ का पूना से लिखा हुआ, समय पर मिल गया था और जैन साहित्य सशोधक के अक.५ और ६ भी मिले। जिसके लिये मैं आपका अत्यंत अनुग्रहित हूँ। संशोधक पत्र भी उसकी शैली का एक ही पत्र है और उसमे जो लेख प्रकाशित होते हैं वे अमूल्य रत्नो के समान हैं। ___विजय देवसूरि के संबंध के लेख का मेवाड़ से ताल्लुक रखने वाला अंश अब आपको अवकाश हो तव नकल कराकर भिजवाने की कृपा कीजियेगा। जैन साहित्य संशोधक के लिये मैं "जैन लेखक और कन्नौज के रघवंशी प्रतिहार राजा" नामक लेख सावकाश लिखकर आपकी सेवा मे भेजूंगा। मेरी आखो मे तकलीफ होने के कारण लिखने का काम मैं कम करता हूँ परन्तु लेखक से लिखवाकर उसे शुद्ध कर देता हूँ।
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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