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बाबू श्री पूरणचन्द जी नाहर के पत्र
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करें। मै इस ज्ञाति की सृष्टि के समय पर मेरा कुछ विचार पुस्तक की भूमिका में दिया है सो आप देख लेंगे। आपको इस प्रकार कष्ट देते है सो क्षमा करें।
मेरे दोहित्र श्रीमान रणधीर सिंह जी बच्छावत गत अक्टूवर में यहाँ से लॉ पढ़ने इग्लैड गया है और वहाँ ३०, वेल साइज पार्क, आर्य भवन, मे है । लड़का बड़ा सुशील है मै इस मेल में उसको पत्र लिखता हूँ। यदि कोई छुट्टी Vacation पर कॉन्टीनेण्ट की तरफ जायगा तो आपसे अवश्य मिलने को लिख दूंगा। यदि किसी कार्य वश आपका लन्दन जाना हो तो कृपया उक्त ठिकाने में उससे मीलिएगा मेरी आँखों में जो केट्रक्ट हुआ है वह अभी आपरेशन के लायक नही हुआ है। ऐसा यहाँ के डाक्टर लोग कहते हैं। मोगा वाले तो काटने को तैयार थे यदि शारीरिक अवस्था जाने लायक होती तो मै भी एक वार उधर ही जाकर आपरेशन करवाता। स्वामी सत्यदेव परिव्राजक जी से शायद आपका मिलना हआ होगा। उनके लेखों से ज्ञात होता है कि वे भी बड़े उत्साही और अनुभवी हैं। मेरे योग्य सेवा लिखे । कृपा वनी रखें।
निवेदक
पूरणचन्द नाहर पु० नि० - हाल ही मे महामहोपाध्याय हरप्रसाद शास्त्री जी महोदय की जुवली उत्सव पर पुस्तकाकार लेखो का संग्रह जो छपने वाला है। उसमें भगवान पार्श्वनाथ' नाम का एक छोटा सा प्रवन्ध देने के लिये मैंने लिखा है । इस लेख में मैंने यह बताया है कि हिन्दुओ के महादेवजी की तरह अपने जैनी पार्श्वनाथ जी को ही बहुत से नामों से पूजा प्रतिष्ठा करते है और देखने में आता है कि श्वेताम्बर मतवाले पार्श्वनाथ स्वामी को श्री चिन्तामणि, श्री अमीझरा, श्री सामलिया इत्यादि सैकडो नाम भेद से जैसे पूजते है वैसे दिगम्बरियो मे देखा नही जाता है। यह भी श्वेताम्बरी प्राचीनता का दृष्टान्त है। लेख छपने पर उसकी कापी नापको भेजेंगे। और अंग्रेजी बंगला आदि के कुछ