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- सुख और दुख जीवन में प्रवाहित होने वाली दो धाराएँ हैं। सुख-साधनो के सयोग से सुख, और उनके वियोग से दुख होता है। ससारी सुख अनित्य एव क्षण भगुर है। इसमे स्थायित्व की गु जाइश नही। नश्वर पदार्थों से उत्पन्न सुख कभी अनश्वर या स्थायी नही हो सकता । जब तक अन्तर्मन से वासनाओ का अन्त नही होता, तब तक सच्चे सुख अथग परमानन्द की प्राप्ति नही हो सकती। आनन्द की अनुभूति वाणी से नही कही जा सकती सम्पूर्ण रूप से । वह तो गूगे का गुड है एक तरह से। जो अभिव्यक्ति से परे की बात है। आनन्द का साधन सत्सग है, सद्शास्त्रो का स्वध्याय है, मनन-चिन्तन है । इसी मार्ग से होकर अनश्वर सुखोपलब्धि तक पहुंचा जाता है । दुखो की धारा को सदा-सदा के लिए शोपित किया जा सकता है।
६८ | चिन्तन-कण