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प्रस्तुत सकलन के पीछे भी कुछ ऐसी ही भावना ने काम किया है। आज के मानव का जीवन व्यस्तता की अथाह गहराईयो मे डूब चुका है। वर्तमान की परिस्थितियो ने मनुष्य को इतना अत्यधिक व्यस्त बना दिया है कि उसे धार्मिक क्रियाओ के करने या धर्मग्रन्थो के पठन-पाठन का ठीक समय ही नही मिल पाता। जिज्ञासु-जन इससे जीवन मे कुछ रिक्तता अनुभव करने लगे हैं।
इसी रिक्तता को भरने मे प्रस्तुत सकलन अधिक उपयोगी होगा, ऐसा हृदय का विश्वास है। राष्ट्रसन्त, उपाध्याय कविरत्न श्री अमरमुनि जी महाराज तो सतत प्रवहमान ज्ञान गगा के अजस्र स्रोत हैं। इस अनन्त ज्ञान राशि मे से कुछ कण ही सकलित कर पाया हूँ। जो आज के व्यस्त जीवन जीवियो के लिए अधिक उपयोगी होंगे। जो अध्ययन की दिशा में अधिक अग्रसर नही हो सकते वे इससे अवश्य ही लाभान्वित हो सकेंगे। छोटे-छोटे रूप मे जीवनोपयोगी कुछ चिन्तन-कण इसमे सकलित किए हैं। जो हमे हमारे प्रतिदिन के कार्य-व्यवहार मे जागरुकता बरतने का इगित करते हैं।
उमेश मुनि
जैन भवन लोहामंडी, आगरा शरद पूर्णिमा २० अक्टूबर १९७५